बिहार सात में जिलों में हुए सांप्रदायिक तनाव के मामले ने बिहार सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिय. दंगों के वजह बीजेपी और जदयू के बीच रिश्ते भी खटास आ गई. जबकि यह भी देखा कि आपत्तिजनक और विवादित बयानबाजी करने वाले और सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओ के बीच मतभेद जैसे हालात हो गये. बिहार में बीजेपी दो धड़े में नजर आने लगी. बीजेपी नेताओं की बीच दरारे पड़ने की बात भी सामने आने लगी.
पिछले महीने दरभंगा में बीजेपी कार्यकर्ता के पिता की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय और केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि उस शक्स की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उसने चौराहे का नाम प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर रखा था. लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इस घटना में मोदी चौक की वजह होने से इनकार किया था. उन्होंने कहा था की ज़मीन विवाद के चलते हत्या हुई थी.
शुरूआत में ये लड़ाई दोनों खेमों से तीन-तीन लोगों के बीच थी. सुशील मोदी को बीजेपी के नेता मंगल पांडे और नंद किशोर यादव से समर्थन मिला. जबकि दूसरी तरफ नित्यानंद राय और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे की तिकड़ी थी.
29 मार्च को प्रदेश बीजेपी कोर कमेटी की एक बैठक बुलाई गई जिसमें पार्टी के हाई कमान ने ये सुनिश्चित किया कि सारे नेता एकजुट होकर बोलेंगे. साथ ही ये स्पष्ट किया गया कि पार्टी अपनी विचारधारा पर आक्रामक रूख बनाए रखेगी. पिछले महीने उपचुनाव के दौरान नित्यानंद राय ने कहा था कि अगर अररिया में आरजेडी को जीत मिलती है तो फिर ये क्षेत्र आईएसआई का अड्डा बन जाएगा. नीतीश कुमार उनके इस बयान से खुश नहीं थे. बाद में सोशल मीडिया पर अररिया का एक वीडियो वायरल हुआ जहां कुछ लोग ‘पाकिस्तान के समर्थन में’ नारे लगा रहे थे. गिरिराज सिंह ने इस मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बना दिया. सुशील मोदी और दूसरे नेताओं ने खुद को इस मुद्दे से दूर कर लिया. जबकि कुछ नेता इसका समर्थन करते रहे.
सुशील मोदी नीतीश के हमेशा करीबी रहे हैं. साल 2013 में जब नीतीश ने गठबंधन तोड़ कर लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया था तब भी सुशील मोदी के वो करीबी थे. नीतीश के एनडीए में वापसी के बाद सुशील मोदी कई बार कह चुके हैं कि ‘दल अलग हो गए थे, दिल मिला हुआ था’
बीजेपी के कई नेताओं ने ये स्वीकार किया है कि नीतीश कुमार खुद ये चाहते थे कि सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री बने. नीतीश के इस फैसले से राज्य के कई नेता खुश नहीं थे. सुशील मोदी सरकार में अपने करीबियों को भी लाने में कामयाब रहे.
लेकिन बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव राज्य इकाई को लगातार ये संदेश देते रहे कि सत्ता नहीं संगठन जरूरी है. नित्यानंद राय को पार्टी के हाई कमान से पूरे समर्थन का आश्वासन दिया गया. लिहाजा वो 2019 के चुनाव के लिए रणनीति बनाने में जुट गए. उनका लक्ष्य हर बूथ तक पहुंचना है. नित्यानंद राय मार्च 2019 तक हर विधानसभा क्षेत्र में एक रात रुकना चाहते हैं. उनके करीबी सहयोगियों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर मीडिया को दी जानकारी में यह कहा “नित्यानंद जी के राज्य अध्यक्ष होने के बावजूद सुशील मोदी ही पार्टी और संगठनात्मक बैठकों का नेतृत्व करते थे. लेकिन अब ये बंद कर दिया गया है. नित्यानंद जी अब इस रोल में आ गए हैं. अब आप बदलाव देख सकते हैं. “
केंद्रीय मंत्रियों में गिरिराज सिंह, आरके सिंह, अश्विनी चौबे और राम कृपाल यादव, नित्यानंद राय के समर्थन में हैं. ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने खुले तौर पर 2015 विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर सुशील मोदी की निंदा की थी. उन्होंने सुशील मोदी को ‘टिकट का सौदागर’ कहा था. इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंत्री पद देकर हर किसी को हैरान कर दिया था. नित्यानंद राय भूपेंद्र यादव के काफी करीबी हैं. वो उन्हें पार्टी के एक ऐसे नेता के तौर पर देखते हैं जो चुनावी मैदान में लालू यादव और उनके उत्तराधिकारी तेजस्वी को चुनौती दे सकते हैं. इसके अलावा नित्यानंद राय जमीनी स्तर पर राजनीतिक लड़ाई लड़ने में विश्वास करते हैं जो कि सुशील मोदी के साथ नहीं है.
इनपुट:IN18