“ना घर पर कुछ खाने को है, ना कुछ खरीदने को पैसे, हमारी सिर्फ एक ही दरख्वास्त है कि हमें हमारे घर भेज दीजिये, लेकिन हमें घर भी नहीं जाने दिया जा रहा है. मेरी हालत इतनी ख़राब है कि मैं कभी-कभी आत्महत्या करने की सोचता हूँ. मैंने अपना हाल सोशल मीडिया पर बयां किया है शायद वहीँ से कोई मदद का हाथ बढ़ा सकें. अगर हम भारतीय दूतावास में जाते है हो वहां भी कोई हमारी मदद करने के लिए राज़ी नहीं है. हम करें तो क्या करें.?”
यह दुखद लफ्ज़ उन भारतीय कर्मचारियों के है जो कुवैत में फसें हुए है.
दरअसल कुवैत की खराफी नेशनल, एक इंफ़्रास्ट्रक्चर कंपनी है जहाँ 7,300 भारतीय कर्मचारी फसें हुए है. ना 10 महीनों से उनको वेतन नहीं दिया जा है. एक साल से ज्यादा का समय हो गया ना इन कर्मचारियों के पास खाने को खाना और ना पैसे. जो हर रोज़ अपना पेट भरने के लिए जद्दोजहद कर रहें है.
इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल रही है और उनमें से आधे से ज्यादा कर्मचारियों के पास जो वीज़ा है उसकी अवधि भी कई महीनों पहले खत्म हो चुकी है. इसका मतलब यह है कि वे बिना जुर्माना भुगते घर भी नहीं जा सकते है, और भुगतान करने के लिए उनके पास पैसे नहीं है. अब उनकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि उन्हें यह तक समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो इस दलदल से कब बाहर निकलेंगे.
कुवैत में काम करने वाले तमिलनाडु मूल के मुरुगन ने कहा कि, “मेरे पास मेरे बच्चों और पत्नी को देने के लिए भी पैसे नहीं है. मैने एक साल से अपने घर में पैसे नहीं भेजें है. हम में से कुछ के वीज़ा हैं हमें वीज़ा की अवधि खत्म होने की वजह से भारी जुर्माना देना होगा. मुझे भारत वापस जाने के लिए 80,000 रुपये का भुगतान करना होगा. मैं इतने पैसे कहाँ से लाऊंगा.” आपको बता दें कि, वीज़ा की अवधि खत्म होने के बाद 2 दिनार(424 रुपए) प्रति दिन का शुल्क देना होगा.
इन परेशान हाल प्रवासियों के लिए मदद का हाथ बढाने के लिए सामने आने वाली शख्सियत है कुवैत की सामाजिक कार्यकर्ता शाहीन सय्यद है, जो भारतीय मूल की रहने वाली है. वर्ल्ड न्यूज़ अरेबिया से बात करते हुए शाहीन ने बताया कि, उन्होंने प्रवासियों की मदद करने का फैसला किया. यह लोग भूखे-प्यासे अपनी जिंदगी गुज़ार रहे थे. कुछ दिनों तक तो शाहीन ने इन्हें अपने पास से खाना खिलाया. लेकिन प्रवासियों की तादाद अधिक होने की वजह से वह इनका पेट भरने के लिए असमर्थ होने लगीं, तब उन्होंने कुवैत के स्थानीय सिख समुदाय के बात करके भूखे प्रवासियों का पेट भर ने का इंतज़ाम किया. जो उन्हें एक वक़्त का खाना मुहय्या करने के लिए राज़ी हो गये. इसके बाद उन्होंने स्थानीय मुस्लिम समुदाय से बात की जहाँ से उन्हें खाना मिल पा रहा है.
‘भारत सरकार से हैं उम्मीदें’
परेशान हाल प्रवासियों के इन हालातों का ज़िम्मेदार आखिर कौन है? यह सवाल हर उस भारतीय प्रवासी के मन में बना हुआ जो भारत सरकार से मदद की गुहार लगा है लेकिन उसे मदद नहीं मिल पा रही है. अब इस स्थिति में वह क्या करे, क्यूंकि उसके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है लेकिन वह आत्महत्या भी नहीं कर सकता क्यूंकि स्वदेश में उसके घरवाले उसकी आने की राह तक रहें है. अब इन प्रवासियों को अपने वतन की सरकार से ही उम्मीदें है की वह उनकी मदद करेगी. उन्हें हर पल इंतज़ार है कि भारत सरकार उनकी मदद करेगी, और उनके पैसों का भुगतान करने में मदद करेगी. अगर उनके पैसे वापिस नहीं मिले तो वह अपने देश कैसे जा पाएँगे.
प्रवासियों का कहना है कि, अधिकारिक तौर से तो कुवैत में फसें प्रवासियों की मदद भारत सरकार को ही करनी चाहए और प्रवासियों का हक़ उन्हें वापिस मिलना चाहए.
बेलागवी, कर्नाटक के एक मूल निवासी सजिल कुमार भाग्यशाली लोगों में से एक थे. जिन्होंने 2017 में खराफी नेशनल से इस्तीफा दे दिया और एक इलेक्ट्रिकल डिजाइन इंजीनियर के रूप में एक वर्ष और तीन महीने काम किया था. उन्होंने कहा कि शुक्र है मैंने कंपनी के हालात खराब होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने बताया की खराफी कंपनी के हालात 2015 के आखिर में शुरू होने लगें. कंपनी उस समय दो महीनों के अंतराल में वेतन चुका रही थी, लेकिन 2016 के बीच से कंपनी के हालात बेहद खराब होने शुरू हो गये तब कंपनी के पास इनता पैसा भी नहीं बचा की वह कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर सकें. धीरे-धीरे कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ना शुरू कर दिया.
‘राहत के नाम पर कुवैत सरकार से क्या मिला’
कर्मचारियों की परेशानी को मद्देनज़र रखते हुए कुवैत सरकार ने अवैध तरीकों से रहने पर मजबूर प्रवासियों के लिए जुर्माने को माफ़ करने का ऐलान किया है. सरकार के इस फैसले से वहां के हजारों भारतीय प्रवासियों को राहत तो मिली है. दरअसल, वेतन न मिलने की वजह से हजारों भारतीय प्रवासियों को मजबूरन अवैध तरीके से कुवैत में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. मंगलवार को कुवैत सरकार ने ऐलान किया कि इन भारतीयों पर किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया जाएगा. यह रियायत 29 जनवरी से 22 फरवरी के लिए मिली थी.
कुवैत में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की मदद में सामने आयीं कुवैत की सामाजिक कार्यकर्ता शाहीन सय्यद ने वर्ल्ड न्यूज़ अरेबिया को बताया कि अब वह प्रवासियों के समर्थन में सोशल मीडिया पर उनके अधिकारों के लिए लड़ रही है और उनकी मदद कर रही है.
शाहीन सय्यद ने कहा, ‘यह भारतीय प्रवासियों के लिए बड़ी राहत है.’ खराफी नैशनल कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी नरेश नायडू को सैलरी न मिलने की वजह से ज्यादा समय तक रुकने को मजबूर होना पड़ा है. नायडू आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं. इस मामले को लेकर उन्होंने बताया कि वह मंगलवार को कुवैत में भारतीय दूतावास गए थे और अपना ब्योरा सौंपा जिससे वह स्वदेश वापस लौट सकें. उन्होंने बताया, ‘मैंने देखा कि मेरे राज्य के कई कर्मचारी अपने देश लौटना चाहते है.’
अब सवाल यह है की वीज़ा की अवधि खत्म होने का भुगतान तो माफ़ कर दिया गया है लेकिन प्रविसियों के वेतन का क्या जो उन्हें अभी तक नहीं मिल रहा है और कब तक मिलेगा इस बारें भी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. अपने वतन लौटने की उम्मीद में यह प्रवासी कुवैत में जद्दोजहद में लगें हुए है.