रियाद. सऊदी अरब और कतर का विवाद लगातार गहराता जा रहा है। कतर को अलग-थलग करने के लिए सऊदी उसके साथ जमीनी संपर्क ही खत्म कर देना चाहता है। इसके लिए वो कतर से लगी सीमा पर नहर खोदने की योजना तैयार कर रहा है, जिससे कतर पूरी तरह एक टापू में तब्दील हो जाएगा।
इस नहर में सऊदी अपना परमाणु कचरा भी फेंकेगा। सऊदी के ही अल रियाद और सब्क न्यूजपेपर के मुताबिक, शासन सीमा के एक हिस्से पर मिलिट्री बेस भी बनाना चाहता है। हालांकि, अभी इस योजना को शासन की आधिकारिक मंजूरी नहीं मिली है और इसमें कई रूकावटें भी सामने आ रही हैं।
योजना पर अड़ंगा लगा सकता है अमेरिका
– दरअसल, कतर और सऊदी अरब दोनों के अमेरिका से काफी अच्छे संबंध हैं। जहां कतर में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है, वहीं रक्षा क्षेत्र में अमेरिका सऊदी अरब का सबसे बड़ा सहयोगी है।
– वहीं, अब कतर के शेख तमीम बिन हमाद अल थानी भी ट्रम्प से मिलने वॉशिंगटन गए है। सोमवार को उन्होंने रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस से भी मुलाकात की है। माना जा रहा है कि वे खाड़ी देशों से विवाद सुलझाने पर भी बात कर सकते हैं। ऐसे में सऊदी अरब के लिए ये प्रस्ताव लाना मुश्किल हो सकता है।
5 हजार करोड़ 12 महीने में तैयार होगी नहर
– सोमवार को सऊदी के सब्क अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, कतर के साथ लगी पूरी सीमा पर नहर बनाने में करीब 2.8 बिलियन रीयाल (करीब 5 हजार करोड़ रूपए) का खर्च आ सकता है। सऊदी साम्राज्य नहर को 200 मीटर चौड़ा और 20 मीटर तक गहरा बनाने की योजना बना रहा है।
– वहीं एक पुरानी रिपोर्ट में सब्क ने दावा किया था कि सऊदी के प्रस्ताव से कतर एक टापू में तब्दील हो जाएगा। इसे पूरा करने में सिर्फ 12 महीने लगेंगे और इसे सऊदी और अमीरात के निवेशक मिलकर फंड करेंगे। इसे मिस्त्र की कंपनी बनाएगी।
क्या है सऊदी अरब कतर विवाद?
– बता दें कि सऊदी अरब, मिस्त्र, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने पिछले साल जून में कतर पर आतंकी संगठनों को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए सभी संबंध खत्म कर लिए थे। इस फैसले के चलते 36 साल पुराने गल्फ यूनियन में भी दरार पड़ गई थी।
– सऊदी का आरोप है कि कतर मिस्त्र के कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता है। साथ ही आईएसआईएस और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों को भी फंड पहुंचाकर खाड़ी देशों में अस्थिरता पैदा करता है। हालांकि कतर इन आरोपों को आधारहीन बताता रहा है।
– सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने 2014 में भी कतर पर आतंरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाते हुए अपने राजदूत वापस बुला लिए थे।