अरब सांसदों के विरोध के बावजूद इस्राइल पर कोई फर्क नहीं पड़ा और इस देश ने एक बड़ा फैसला ले लिया गया है। बता दें कि गुरुवार को इस्राइल की संसद ने एक ऐसे विधेयक को पारित किया है जो पूरी तरह से विवादास्पद है, इससे देश में अब अरब नागरिकों के प्रति धड़ल्ले से भेदभाव शुरू हो सकता है। जानकारी के अनुसार यहूदी राष्ट्र दर्जा विधेयक ने अरबी को आधिकारिक भाषा से हटा दिया और कहा कि यहूदी बस्तियों का विस्तार राष्ट्रहित में है। ‘पूरा और एकजुट’ जेरूसलम इसकी राजधानी है।
इस्राइल के अरब सांसदों ने कानून की निंदा की लेकिन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे ‘निर्धारक क्षण’ बताते हुए इसकी तारीफ की। अरब सांसदों और फिलिस्तीनियों ने इस कानून को नस्लवादी भावना से प्रेरित बताया और कहा कि संसद में हंगामेदार बहस के बाद इस विधेयक के पारित होने पर ‘रंगभेद’ वैध हो गया है। वहीं, इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने विधेयक पारित होने के बाद कहा, ‘यह देश के इतिहास में एक निर्णायक पल है जिसने हमारी भाषा, हमारे राष्ट्रगान और हमारे राष्ट्र ध्वज को सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया है।’
देश की दक्षिणपंथी सरकार द्वारा समर्थित विधेयक में कहा गया है, ‘इस्राइल यहूदी लोगों की ऐतिहासिक मातृभूमि है और यहां उनके पास राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता का पूर्ण अधिकार है।’ बता दे की अब देश देश की राष्ट्रीय भाषा ‘हिब्रू’ हो गयी है. जबकि आधिकारिक रूप से अरबी भाषा को हटा दिया गया है। मालूम हो कि इस्राइल की करीब नब्बे लाख की आबादी अरबी है, जो यहां की कुल आबादी का 20 प्रतिशत होता है।