neet aspirant richa sinha suicide: bihar college student last words express importance of stress management

शालिनी ने अपने माता पिता को लिखे पत्र में दिल निकालकर रख दिया
★फोटो : अमर उजाला

विस्तार

जिस समय राजस्थान के कोटा में कोचिंग कर रही रांची की ऋचा सिन्हा की सुसाइड की खबर से पूरी दुनिया वाकिफ हो रही थी, बिहार के जमुई में भी 18 साल की एक लड़की की पॉलिटेक्निक कॉलेज के हॉस्टल में लाश मिली। ठीक उसी तरह, झूलती हुई। ऋचा की तरह ही इस मौत में भी सुसाइड की बात लगभग मान ली गई है। ऋचा कोटा में थी और वहां इस साल कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई के दौरान सुसाइड करने वालों की शृंखला में वह 23वीं थी, इसलिए खूब चर्चा हुई। लेकिन, ध्यान देने वाली बात है कि वह मौन चली गई। बिना बताए। लेकिन, बिहार के जमुई में 18 साल की शालिनी कुमारी ने लगभग वही बातें लिखी हैं जो ऋचा बगैर लिखे चली गई। ‘अमर उजाला’ दोनों ही बच्चियों के परिवार से सांत्वना रखता है, लेकिन इन घटनाओं के दुहराव को रोकने के लिए शालिनी को इनका प्रतीक मानते हुए उसके लिखे अंतिम शब्दों को सामने लाया जा रहा है। जान देना कितनी हिम्मत की बात है, यह हिम्मत किन परिस्थियों में आती है और ऐसी नकारात्मक हिम्मत से बच्चे कैसे बच सकते हैं; इन बातों से पहले वाक्य विन्यास में जरूरी सुधार के साथ एक पुत्री की अपने माता-पिता के नाम लिखी चिट्ठी पढ़िए-

दिल को झकझोर देने वाला पत्र

“हम जो भी करने जा रहे हैं अपने मन से करने जा रहे हैं इसमें किसी का दबाव नहीं है। जिन लोगों को मेरे कारण परेशानी हुई, उन लोगों से माफी मांगते हैं। अपने लाइफ के बारे में क्या कहें। हम गलत नहीं थे लेकिन वह शब्द नहीं मिल पाया जिसे खुद को सही साबित कर सके। हम इतने बुरे नहीं थे जितना आप लोग समझ लिए थे, अपने जिंदगी के बारे में क्या बोले हम। क्लास 10 के अंदर थे तब बहुत अच्छा नहीं कर पाए। हम मेहनत तो बहुत करते थे लेकिन पता ही नहीं था कि पढ़ना कैसे हैं इसलिए बहुत अच्छा नहीं कर पा रहे थे। फिर क्लास 10 पास कर गए तो लॉकडाउन लग गया और क्लास 11 नहीं पढ़ पाए, इसलिए जब वहां पर क्लास 12 पढ़े तो समझने में बहुत परेशानी हो रहा था। जब बोर्ड एग्जाम 2022 में दिए तो एग्जाम बहुत अच्छा नहीं गया था। लेकिन किस्मत का खेल ऐसा था कि जितना ऑब्जेक्टिव बना सिर्फ वही सही हुआ उससे कम नंबर आया फिर घर में सब बोले कि हमारा विश्वास नहीं होबो हो कि एकरे साथ सिर्फ ऐसन हो जा है। अब हम किसको क्या समझाते। फिर टारगेट करने गए, टारगेट का पढ़ रहे थे और साइड से बोर्ड का भी पढ़ रहे थे तो फिर बोर्ड का एग्जाम 2023 में दिए। फिर रिजल्ट निकला तो बहुत बढ़िया तो रिजल्ट नहीं आया लेकिन अच्छा आया। थोड़ा और ऑब्जेक्टिव सही हो जाता और अच्छा आता। फिर टारगेट जब पढ़ रहे थे तो बायो के साथ मैथ भी पढ़े ताकि फिजिक्स पढ़ने में आसानी हो और हुआ भी वही। और हम खुश भी हो गए कि अब पढ़ाई सब समझ में आ रहा है, अब सब कुछ अच्छा होगा मेरे साथ लाइफ में लेकिन फिर नीट का एग्जाम दिए और question भी अच्छा आया था। मेरा इस बार सलेक्शन तो नहीं होता लेकिन बढ़िया आता। हमको जितना question बना, पहले बना लिए, फिर अंदाज पर टिक ज्यादा लगा देए। फिर नेगेटिव ज्यादा चला गया और मार्क्स बहुत गंदा आया। फिर एग्रीकल्चर का एग्जाम दिए। फिर इस बार एग्जाम दिए, एग्जाम अच्छा गया और हम खुश हुए इस बार नेगेटिव भी ज्यादा नहीं किया क्यों कि नीट से ज्यादा डर गए। नीट एग्जाम देकर आए थे तो पापा बोले कि इकरा कुछ अइबे नै करै होतै तब की करते हल कुछ कुछ टिक मार देलकै। इसलिए डर गए इस बार नेगेटिव भी ज्यादा नहीं किया लेकिन रिजल्ट इतना गंदा दिया कि क्या बोले हम। फिर हम घर में बोले कि 1 साल और तैयारी का मौका दो तो बोला गया कि नहीं देंगे तुम 4 साल 5 साल तैयारी करती रहेगी। अब 4 साल 5 साल नहीं मांगेंगे लेकिन कोई मेरा बात नहीं सुना। फिर मम्मी पापा बोले कि सब पढ़ता है कि नहीं। छोटू बीएससी की तैयारी कर रहा है कि नहीं। यह हिस्ट्री सिविक्स नहीं है मम्मी यह साइंस है, इसमें टीचर के पास या कोचिंग में जाना पड़ता है लेकिन कोई मेरी बात नहीं सुन रहा था। जब मां-बाप मेरा नहीं सुन रहे थे तो किसके पास जाते। मेरा चरित्र भी अच्छा है इसलिए मेरा दुनिया में कोई नहीं था। मम्मी को समझाते थे तो बोलती थी कि इसको शादी ब्याह करके चला दीजिए। इकरा काहे ले रखले छहों। पापा बोलते थे कि तोरा कहलियो कि बढ़िया स्कूल में नै पढाओ नै त मन बढ़ जैतो। ई सब के खाय जैतो। मेरी मम्मी पापा मेरा प्रॉब्लम समझने के लिए तैयार नहीं थे हम किस-किस से लड़ते इसलिए हम सोच लिए थे कि अब किसी से नहीं लड़ेंगे हम तो भगवान से भी मन्नत मांगे कि हे भगवान एक साल और मम्मी पापा तैयारी का मौका दे देंगे तो हम लाल कपड़ा में नारियल बांधकर चढ़ावा चढ़ाएंगे लेकिन मेरा मन्नत पूरा नहीं हुआ। भगवान ही मेरा जिंदगी का दरवाजा बंद कर दिए थे अब क्या करते। भगवान बंद कर दिया जिंदगी का दरवाजा। मां-बाप बंद कर दिया यह सब बात हमको सपना में भी परेशान करता था लेकिन किसी से कोई शिकवा शिकायत नहीं। मां पापा आप हमको बोझ समझ लिए थे लेकिन मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। भगवान से दुआ करते हैं कि मेरे जाने के बाद सब खुश रहें। इस जिंदगी का अंत होना जरूरी था। यह जिंदगी एक काल बन गया था इसलिए इसका अंत होना जरूरी था। पापा को बोलते थे कि 1 साल तैयारी करने का मौका दीजिए तो बोले कि तुमको क्या लगता है तोर हो जैतो, तोर नै होतौ। जब मां बाप ऐसा बोला तो अब किसके पास जाते इसलिए इसका अंत करना जरूरी था। यह कैसे हो सकता था कि सब मेहनत करता है सबका हो जाता है और हम मेहनत करते पढ़ते तो मेरा नहीं होता। हम समझ गए कि यह जालिम दुनिया में कोई किसी का अपना नहीं होता है इसलिए किसी के लिए नहीं जीना अब दुनिया छोड़कर जाना है।”

तीन लक्षणों को घर में जन्म ही नहीं लेने दें

मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार कहते हैं कि “यह समस्या कोटा में जन्म लेने वाली नहीं। हर उस घर में इस समस्या का जन्म हो जाता है★1. जहां माता-पिता बच्चे की क्षमता और उसकी पसंद-नापसंद समझे बगैर उसपर अपनी महत्वाकांक्षा थोपते हैं, 2. जहां दूसरे के बच्चों को अच्छा और अपने बच्चे को कमजोर बताकर अभिभावक उसे खुद कमजोर करते हैं, 3. जहां बच्चे और अभिभावक के बीच बेहद सहज संवाद नहीं होता। कब इन तीनों में से किसी या सभी समस्या का जन्म हो जाए, पता नहीं चलता। आगे चलकर बच्चा दबा हुआ महसूस करता है। वह या तो अपनी हार में माता-पिता की हार समझ उनसे आंख मिलाने की हिम्मत छोड़ देता है या फिर अपनी असफलता को बाकी परिस्थितियों से जोड़कर देखते हुए बुरा फैसला ले लेता है।” तो क्या मां-बाप बच्चों को खुली छूट दे दें, इस डर से? शालिनी की चिट्ठी को पढ़कर डॉ. मनोज कहते हैं★”अभिभावकों को अपनी संतान से स्वस्थ संवाद रखना चाहिए। बच्चों के मन में स्थायी भाव यह विकसित करना चाहिए कि वह अपने परिवार के लिए अनमोल हैं, इसलिए लक्ष्य का संभव या असंभव होना तय करते समय अभिभावकों से वह खुलकर बात करें। अपना अधिकतम प्रयास ही उनके हाथ में है। हां, इस प्रयास के पहले लक्ष्य चुनते समय ही खुलकर बात होनी चाहिए।”

News Summary:
★A suicide case of a Bihar college student has brought attention to the issue of stress among NEET aspirants, similar to the recent case in Kota, Rajasthan.
★The student, Shalini Kumari, wrote a letter to her parents expressing her feelings and struggles during her preparation for competitive exams.
★Psychologist Dr. Manoj Kumar emphasizes the importance of open communication between parents and children to address issues related to academic pressure.
★He also points out three factors that contribute to the development of such problems in households and suggests that parents should have healthy conversations with their children to build their self-esteem and help them cope with challenges.

Word count: 301 words

खबर हिंदी में भी समझिए

एक कोटा में कोचिंग करने वाली ऋचा सिन्हा की सुसाइड की खबर के साथ ही बिहार के जमुई में भी एक लड़की की पॉलिटेक्निक कॉलेज के हॉस्टल में उसकी लाश मिली। ऋचा के प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए, शालिनी कुमारी ने उसकी तरह एक पत्र लिखा है। यह खबर बताती है कि इन दो घटनाओं के द्वारा किये गए सुसाइड को रोकने के लिए शालिनी के अंतिम शब्दों को महत्व दिया जा रहा है। उन्होंने अपने माता-पिता को एक पत्र में यह कहा है कि वह बेहतर जीवन जीने के लिए किसी से लड़ने की कोशिश नहीं करेगी और अपनी मौत के बाद वह चाहती है कि सब खुश रहें। मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार के अनुसार, इस समस्या का जन्म उस घर में होता है जहां माता-पिता बच्चे की क्षमता और पसंद-नापसंद को समझे बगैर अपनी महत्वाकांक्षा थोपते हैं, दूसरे बच्चों को अच्छा और अपने बच्चे को कमजोर बताकर उन्हें खुद कमजोर करते हैं, और बच्चे और अभिभावक के बीच संवाद नहीं होता है। डॉ. मनोज कुमार कहते हैं कि अभिभावकों को अपनी संतान से संवाद रखना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि वे अपने परिवार के लिए अनमोल हैं।

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