भागलपुर मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर नगरपारा गांव में स्थित एक पौराणिक कुआं है, जो मुगलकालीन है और सैकड़ों वर्ष पुराना है। इसका निर्माण साके सम्वत 1634 ईसवी में चंदेल वंश के राजा गौरनारायन सिंह ने करवाया था। यह कुआं बिहार में सबसे बड़ा माना जाता है। कुईं की सफाई के दौरान राधा कृष्ण और लड्डू गोपाल की प्रतिमाएं समेत कई छोटी छोटी तांबे की प्रतिमाएं मिली थीं।
इस कुआं के पानी की खासियत यह है कि इससे घेघा (गोइटर) रोग छूट जाता है, क्योंकि पानी में आयोडीन की मात्रा होती है। इसलिए भागलपुर, खगड़िया, बांका सहित आस-पास के जिलों के लोग इसके पानी का सेवन करते हैं। कहा जाता है कि पहले इस कुआं का पानी सात रंगों में बदलता था। इतना ही नहीं, सैकड़ों वर्षों से यह पुराना कुआं कभी सूखा नहीं है। यहां तक कि 1934 में भूकम्प आने पर भी इसे कोई नुकसान नहीं हुआ।
जिलाधिकारी सुब्रत सेन ने हाल ही में इस कुआं का निरीक्षण किया। उन्होंने इसके पौराणिक इतिहास, गोलाई, चौड़ाई और गहराई को देखकर आश्चर्यचकित होने के साथ-साथ इसकी महत्ता को समझा। उन्होंने अधीनस्थ अधिकारियों को इसे बेहतर सजावट और लाइटिंग के साथ सजाने के निर्देश दिए, ताकि आने वाले लोगों को आकर्षित कर सके।
गांव वाले बताते हैं कि जब चापाकल (ट्यूबवेल) नहीं हुआ करता था, तब इस कुआं का पानी पूरे गांव और आसपास के गांवों के लोग भरकर ले जाते थे। चाहे वह हरिजन हों, राजपूत हों या ब्राह्मण, कोई भेदभाव नहीं होता था। सभी के लिए अलग-अलग कड़ियाँ थीं, लेकिन सभी को पानी भरने की अनुमति थी।