कुवैत में एक और क़ानून लागू, लाखों भारतियों समेत 35 लाख लोगों को देना होगा ये टेस्ट और जमा रहेगा सरकार के पास.
कुवैत में पिछले वर्ष एक कानून पारित किया गया था जिसके तहत देश के हर नागरिक के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह अपना डीएनए नमूना सरकार के पास जमा करवाए। इसके आधार पर हर नागरिक का डीएनए चित्र बनाकर रखा जाएगा और सरकार को अधिकार होगा कि वह इस जानकारी का उपयोग जहां चाहे कर ले। इस मामले में अभी अभी सरकार ने कड़ा रूख अपनाया हैं और कहा हैं की ये क़ानून लागू होकर ही रहेगा.
कुवैत की जनसंख्या 35 लाख है जिसमें से करीब 23 लाख तो विदेशी हैं। उक्त कानून विदेशियों पर भी लागू होगा, जिनमें करीब 7 लाख भारतीय भी शामिल हैं। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह कानून कब प्रभावी होगा मगर जानकार बता रहे हैं कि जल्दी ही कुवैत में नए इलेक्ट्रॉनिक पासपोर्ट चालू होने जा रहे हैं और संभवत: उस प्रक्रिया को इस कानून से जोड़ दिया जाएगा। मतलब पासपोर्ट प्राप्त करने की एक शर्त के तौर पर डीएनए नमूना देना होगा।
कानून को इस आधार पर उचित ठहराया जा रहा है कि इससे आतंकवादियों और अन्य अपराधियों की निगरानी में मदद मिलेगी। मगर दुनिया भर के मानव अधिकार कार्यकर्ता व संगठन तथा जेनेटिक्स वैज्ञानिक इसे व्यक्ति की निजता का घोर उल्लंघन मान रहे हैं। कानून में व्यवस्था यह है कि इसके तहत एकत्रित सूचना का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है।
कानून का विरोध कुवैत में भी शुरु हो गया है हालांकि कुवैत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सख्त अंकुश के चलते विरोध काफी सीमित है। कुवैत के कुछ संगठनों ने कानून के खिलाफ याचिका भी दायर की है। याचिका का आधार तकनीकी है। कानून में कहा गया है कि यदि कोई बच्चा डीएनए नमूना देने से इन्कार करता है, तो उसके माता-पिता को सज़ा दी जा सकती है, जो सात साल की कैद तक हो सकती है। याचिका में कहा गया है कि एक व्यक्ति के ज़ुर्म के लिए किसी अन्य को सज़ा देना उचित नहीं है।
वैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून का विरोध शुरु हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते राष्ट्र संघ की एक समिति ने कुवैत से यह कहते हुए कानून में संशोधन का आव्हान किया है कि यह व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है। समिति ने कहा है कि जेनेटिक जांच मात्र विशिष्ट मामलों में अदालत के आदेश के आधार पर ही की जानी चाहिए।
हाल ही में भारत में इस तरह का कानून बनाने की पहल हुई है मगर शुक्र है कि यह कानून मात्र संदिग्ध अपराधियों पर लागू हुआ, हालांकि इसके भी दुरुपयोग की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
कुवैत में चल रहे आंतरिक विरोध और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के मद्देनज़र उम्मीद की जा रही है कि संभवत: कुवैत सरकार अपने कदम पर पुनर्विचार करती लेकिन कुवैत सरकार के हलिया बयान और अचतीयों ने यह सपस्ट कर दिया हैं की कुवैत की सरकार इस मूड में बिलकुल भी नही हैं.