भारत से बड़ी संख्या में कामगार सऊदी अरब जाते हैं. ऐसे लगभग तीस लाख भारतीय सऊदी अरब में काम करते हैं. मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2018 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम वेतन पर काम करने वाले लगभग एक हजार मजदूरों को रोजाना सऊदी अरब जाने की मंजूरी मिलती है. भारत में बिहार राज्य से सबसे ज्यादा लोग सऊदी अरब कमाने जाते हैं.
 
 
मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इन मजदूरों का शोषण आम बात है और उनकी कहीं सुनवाई भी नहीं होती. यह समूह मांग उठाते रहे हैं कि सऊदी और दूसरे अरब देश अपने यहां प्रचलित कफला सिस्टम यानि विदेशी श्रमिकों के लिए स्थापित एक तरह के प्रायोजित कार्यक्रम को बंद करें. इसमें आप्रवासी मजदूरों के स्वतंत्र जीवन जीने से जुड़े कई बुनियादी अधिकारों पर पाबंदियां लगायी जाती हैं. जैसे कि नौकरी करने वाले अपनी मर्जी से देश छोड़ कर नहीं जा सकते और ना ही जब चाहे नौकरी बदल सकते हैं. ऐसा कुछ भी करने के लिए उन्हें अपने मालिक की लिखित अनुमति लेनी होती है, जो अक्सर आसानी से उन्हे नहीं छोड़ते और कामगारों के पासपोर्ट और यात्रा से जुड़े दस्तावेज जब्त कर के रखते हैं.
 
 
बीते एक महीने से जारी कतर संकट के चलते सऊदी अरब ने अपने यहां से कतर के नागरिकों को निकल जाने का आदेश दिया था. कतर देश के मालिकों के लिए काम करने वाले कई लोग भारत जैसे दक्षिण एशियाई देशों के हैं, जो अब बिना वैध दस्तावेज के सऊदी में ही अटक गये हैं. भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल जैसे कई दक्षिण एशियाई देशों के लोग सऊदी अरब में कतर नागरिकों के लिए घरेलू नौकर और खेती किसानी का काम कर रहे थे.
 
 
गरीबी और कर्ज का बोझ कम करने के लिए कई लोग भारत जैसे देशों से सऊदी अरब का रुख करते हैं. खाड़ी सहयोग परिषद के देशों जैसे बहरीन, कुवैत, ओमान, यूएई और सऊदी अरब में इन्हें “अस्थायी” प्रवासी कामगारों के रूप में काम पर रखा जाता है. इन देशों में बेहद दयनीय हाल में रहने को मजबूर विदेशी कामगारों के उत्पीड़न के मामले भी समय समय पर सामने आते रहते हैं.

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