सऊदी अरब अपने देश में विदेशी श्रमिकों पर लगाए गए फीस पॉलिसी पर समीक्षा करने जा रही है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फीस की पुष्टि पूरी तरह रद्द होने की संभावना नहीं है, लेकिन फीस को कम करने या नए सिरे से फिर से लागू करने पर विचार किया जा रहा है। पिछले डेढ़ साल में लाखों विदेशी श्रमिक सऊदी से निकल चुके हैं, इसी के चलते सऊदी की इकनॉमी को बहुत नुकसान हुआ है।
आने वाले कुछ ही हफ्तों में सऊदी सरकार द्वारा विदशी श्रमिकों के फीस पर बड़ा फैसला ले सकते हैं। इस साल के पहले छह महीनों में किंगडम से पांच लाख से भी ज्यादा विदेशी श्रमिकों ने सऊदी छोड़ा है। सऊदी से विदेश श्रमिकों के छोड़ना वहां की सरकार द्वारा थोपे गए टैक्स, फीस और कुछ से सेक्टरों में प्रतिबंधों की वजह है।
1 जनवरी से लेकर किंगडम ने विदेशी श्रमिकों से प्रति माह 80 से 107 अमेरिकी डॉलर वसूल रही है। यहां तक सऊदी में रह रहे विदेशी श्रमिकों से तेल और इलेक्ट्रिसिटी के लिए वहां की आम जनता की तुलना में ज्यादा फीस वसूली जाती है।
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की आर्थिक परिवर्तन योजना का एक प्रमुख लक्ष्य- विदेशी श्रमिकों पर शु्ल्क का बढ़ाना वहां के व्यापार मालिकों के साथ बहुत ही अलोकप्रिय आइडिया के रूप में रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि न सिर्फ किंगडम ने विदेशी व्यापारियों से रिश्तें खराब किए, बल्कि वहां से कई व्यापारी भी पलायन हो गए। इसी के चलते किंगडम साम्राज्य के अर्थव्यस्था को भी जोर झटका लगा है।