एक बार फिर से सऊदी अरब पर मिसाइल दागा गया है. मिसाइल यमन के हुति विद्रोहियों द्वारा दागा गया. हुति विद्रोहियों ने इस बार सऊदी अरब के रियाडी शहर को निशाना बनाया था. लेकिन गनीमत रही कि यमन की तरफ से लॉन्च हुई 2 मिसाइलों को सऊदी फोर्स ने पहले ही ध्वस्त कर दिया. पिछले साल दिसंबर से लेकर अब तक छठी बार हुति विद्रोहियों ने सऊदी को मिसाइल से निशाना बनाया है. सऊदी फोर्स के अनुसार विद्रोहियों का टारगेट सऊदी डिफेंस मिनिस्ट्री और राजधानी रियाद के अन्य ठिकानों पर था.
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सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान मुल्क की अर्थव्यवस्था में कई ऐसे बदलावों को अंजाम दे रहे हैं जिसका असर अब साफ़ दिख रहा है. सलमान आर्थिक वृद्धि दर में गति लाना चाहते हैं और अपने नागरिकों के लिए नई नौकरियां पैदा करना चाहते हैं. हालांकि सऊदी में विदेशी कंपनियां सरकार की मांग पूरी करने में जूझ़ रही हैं. दशकों से सऊदी में भारत और फिलीपींस के कामगार वैसे कामों को करते रहे हैं जो काम सऊदी के लोग करना पसंद नहीं करते हैं.
वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के अनुसार किचन, कंस्ट्रक्शन और स्टोर काउंटर के पीछे काम करने वाले भारतीय होते हैं या फिलीपींस के. ये काम सऊदी के लोग करना पसंद नहीं करते हैं.
तेल के विशाल भंडार वाले इस देश में ज़्यादातर नागरिक सरकारी नौकरी करते हैं. इसके साथ ही कई कामों में वहां के नागरिक दक्ष नहीं होते हैं और निजी सेक्टर में नौकरी को लेकर उनमें वैसा उत्साह भी नहीं होता है.
सऊदी में विदेशी कंपनियों पर वहां के नागरिकों के लिए कई तरह के दबाव होते हैं. इनमें काम के घंटो का कम होना और अच्छी तनख़्वाह शामिल हैं. कई कंपनियां तो जुर्माने और वीज़ा की समस्या कारण डरी होती हैं. इन्हें नियमों के कारण सऊदी के लोगों को नौकरी पर रखना पड़ता है. वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के अनुसार नियमों के कारण इन कंपनियों को वैसे लोगों को भी रखना पड़ता है जिनकी कोई ज़रूरत नहीं होती है. सऊदी लॉजिस्टिक कंपनी के एक एक्जेक्युटिव अब्दुल मोहसीन का अनुमान है कि उनकी कंपनी में आधे से ज़्यादा वैसे सऊदी नागरिक नौकरी पर हैं जो बस नाम के लिए हैं.उन्होंने वॉल स्ट्रीट जनरल को दिए इंटरव्यू में कहा, ”मेरी कंपनी विदेशी कामगारों के बिना नहीं चल सकती है, क्योंकि कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें सऊदी के लोग कर ही नहीं सकते हैं. इसमें एक काम है ट्रक की ड्राइवरी.”
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सऊदी में बढ़ती बेरोज़गारी
देश के शाही शासक का मानना है कि श्रमिकों में सऊदी के नागरिकों की प्राथमिकता एक ज़रूरी चीज़ है. हालांकि इसे इस स्तर तक ले जाने की मंशा नहीं है जिससे आर्थिक नुक़सान हो.
मोहम्मद बिन-सलमान सऊदी को तेल आधारित अर्थव्यवस्था से आगे ले जाना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि उनकी अर्थव्यवस्था तभी गतिशील होगी जब तेल से निर्भरता कम होगी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी के तहत सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको के छोटे हिस्स को बेचने की तैयारी है. इसके शेयर को जल्द ही बाज़ार में उतारा जा सकता है.
सऊदी के क्राउन प्रिंस इस बात पर भी ज़ोर दे रहे हैं कि लोग सरकारी नौकरी का मोह छोड़ प्रावेइट सेक्टर की तरफ़ रुख़ करें. सऊदी के श्रम मंत्रालय के अनुसार यहां के क़रीब दो तिहाई लोग सरकारी नौकरी करते हैं.
सऊदी कंपनियों पर दबाव बना रहा है कि वो विदेशी कामगारों की जगह सऊदी के नागरिकों को रखें. सऊदी के श्रम मंत्रालय के अनुसार 2017 में यहां बेरोज़गारी दर 12.8 फ़ीसदी थी, जिसे 2030 तक 7 फ़ीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है.
सऊदीकरण
सऊदी इस साल सितंबर महीने से अलग-अलग सेक्टर में सऊदी मूल के कामगारों को रखने के लिए और दबाव बनाने जा रहा है. इसमें सेल्समैन, बेकरी, फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक्स में काम करने वाले विदेशी कामगारों की नौकरी पर असर पड़ना लाजिमी है.
पिछले साल ही जूलरी सेक्टर में इसी तरह विदेशी कामगारों की जगह सऊदी के लोगों लोगों को रखने के लिए कहा गया तो इस सेक्टर में काफ़ी उठापटक देखने को मिली थी.
गल्फ़ बिज़नेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इस सेक्टर के लोगों के लिए मुश्किल स्थिति यह थी कि वो सऊदी के लोगों कहां से लाकर इस काम में लगाएं. इससे सैकड़ों विदेशी कामगारों की नौकरी तो गई ही साथ में जूलरी सेक्टर पर भी इसका बुरा असर पड़ा.
24 साल के अली अल-आयद के पिता ने एक कंपनी शुरू की थी. उन्होंने वॉल स्ट्रीट जनरल से कहा, ”यह सोने का काम है और किसी एक से संभव नहीं है. सऊदी में प्रशिक्षित और इस मामले में दक्ष युवा पर्याप्त नहीं हैं.”
इस परिवार ने नौकरी का विज्ञापन इटंरनेट पर दिया तो सऊदी के लोगों ने दिलचस्पी भी दिखाई, लेकिन कुछ ही लोग नौकरी करने आए. ये काम के घंटों और छुट्टियों को लेकर सहमत नहीं थे.
कई लोगों ने तो नौकरी जॉइन करने के बाद छोड़ दी. इस रिपोर्ट का कहना है कि इसके बाद इस परिवार ने दो भारतीयों को सऊदी के लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए नियुक्त किया.
अब सेल्समैन के काम में भी सऊदी के नागरिकों को रखने के दबाव के कारण भारतीयों को झटका लग सकता है. सऊदी में काम करने वाले भारतीय सेल्समैन को मजबूरी में वतन लौटना पड़ सकता है.
विदेशी कामगारों के लिए महंगा वीज़ा
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सऊदी विदेशी कामगारों के लिए वीज़ा महंगा करने जा रहा है. इस रिपोर्ट के अनुसार सऊदी में निजी कंपनियों को सऊदी के नागरिकों की तुलना में ज़्यादा विदेशी कामगार रखने पर जुर्माना देना होता है.
यह नियम सऊदी के श्रम मंत्रालय ने बनाया है. सऊदी के कंपनी मालिकों का कहना है कि सरकार नियम को मानने पर मजबूर तो कर रही है, लेकिन सऊदी में ऐसे दक्ष लोग हैं कहां जिन्हें काम पर रखा जाए.
जेद्दा में एक विज्ञापन कंपनी के मैनेजर अबुज़ा-येद ने वॉल स्ट्रीट जनरल से कहा कि सऊदी के कामगार केवल तनख़्वाह लेते हैं पर काम नहीं करते हैं.
अबुज़ा की विज्ञापन कंपनी पर 65 हज़ार रियाल का जुर्माना लगा और विदेशी कामगारों के वीजा के अनुरोध को भी रोक दिया गया. अबुज़ा का कहना है कि उनकी कंपनी इस साल के अंत तक चल जाए वही काफ़ी है.
सऊदी में निजी कंपनियों की वहां के शाही शासन से शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं. इस महीने की शुरुआत में किंग सलमान ने इन शिकायतों के निपटारे के लिए अबुल अज़ीज़ को मंत्री बनाया था.
द अरब न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार सोने की इंडस्ट्री से विदेशी सेल्समैन को बाहर करने के बाद वहां की सरकार सऊदीकरण की नीति का और विस्तार करने जा रही है. ऐसे में सऊदी में विदेशियों के लिए काम करना अब आसान नहीं रह जाएगा.
सऊदी सरकार ने हाल ही में पानी, बिजली और ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती की थी और पांच फ़ीसदी वैट लगा दिया था. ऐसे में सरकार इसे संतुलित करने के लिए अपने नागरिकों की नौकरी पर और ज़्यादा ज़ोर दे रही है.
सऊदीकरण की नीति के कारण जूलरी की कई दुकानें बंद करनी पड़ी हैं, लेकिन इस साल के दिसबंर में इसमें और तेज़ी देखने मिल सकती है.
द अरब न्यूज़ का कहना है कि सऊदी के लोग काम के कम घंटे चाहते हैं और साथ ही शिफ़्ट में काम नहीं करना चाहते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ सऊदी के लोग विदशों के प्रशिक्षित कामगारों की तुलना में दोगुनी तनख़्वाह मांगते हैं.
सऊदीकरण की नीति कितना असरदार
सऊदी की सरकार का कहना है कि सऊदीकरण की नीति से देश में बढ़ती बेरोज़गारी पर काबू पाया जा सकेगा, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा.
वॉशिंगटन में अरब गल्फ़ स्टेट्स इंस्टिट्यूट के एक स्कॉलर कोरेन युंग ने द अरब न्यूज़ से कहा, ”सऊदी की श्रम शक्ति के लिए सर्विस सेक्टर के वर्तमान ढांचे में शिफ्ट होना आसान नहीं है. इसमें दस साल से भी ज़्यादा का वक़्त लग सकता है. यह सांस्कृतिक रूप से शिफ्टिंग का मामला है. सर्विस, रीटेल और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में सऊदी के लोगों के लिए काम करना आसान नहीं है.”
सऊदी गैज़ेट अख़बार में स्तंभकार मोहम्मद बासवानी ने लिखा है, ”कंपनियों का कहना है कि सऊदी के लोग आलसी होते हैं और वो काम नहीं करना चाहते हैं. हमें पहले सऊदी के लोगों को काम करने के योग्य बनाने के साथ अवधारणा बदलने की ज़रूरत है. सऊदीकरण एक फ़र्ज़ी नीति है जिसे ख़त्म की ज़रूरत है.”
साभार और इनपुट: BBC