19 घंटे तक जिंदगी की जंग लड़ने के बाद बाद जीतकर एक नया मिसाल कायम करने वाले युवक के जज्बे को आज हर कोई सलाम कर रहा है। 7 घंटे तक गंगा की तेज धारा में तैरकर और 12 घंटे तक जंगल में भटक कर एक युवक किसी तरह से अपने घर पहुंच जाता है और उसको अपने घर के पास देख उसकी पत्नी खुशी से उछल पड़ती है।
बड़हरा प्रखंड के सेमरा गांव के निवासी दिनेश्वर राय नदी की तेज धारा में 20 से 22 किलोमीटर तक दूर वह कर चले गए थे। 42 वर्षीय दिनेश्वर राय को रात करीब 12:00 बजे नदी की तेज धारा अपने साथ बहाकर ले गई। उसके बाद वह किसी तरह से नदी के किनारे पर पहुंचा और वहां टापू मौजूद जंगलों के बीच नंग-धड़ंग अवस्था में भटकता रहा। उसके एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ गंगा बह रही थी। खतरनाक जंगल और तेज धारा वाली गंगा, दोनों के बीच जाना उसके लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं था। लेकिन फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारते हुए यह सोचा कि जंगल में मर जाने से तो अच्छा है इस गंगा मां की गोद में उसकी मृत्यु हो जाय। इसी सोच और जज्बे के साथ दिनेश्वर गंगा में उतर गए और लगातार तैरते रहे।
गंगा में उतरने से पहले दिनेश्वर ने एक लकड़ी का गठ्ठर बनाया था। उसी गठ्ठर सहारे दिनेश्वर कई घंटों तक नदी में तैरते रहें। किनारे से कुछ दूरी पर जब वह नदी में वह तैर रहे थे तो किनारों पर खड़े लोगों ने उन्हें देखा और नदी से बाहर निकाला। उन्हें मंगलवार को शाम 4:00 बजे पटना के गौरैया स्थान के सामने स्थित नीलकंठ टोला के पास मौजूद दियारे के पास नदी से बाहर निकाला गया।
बताया जाता है कि उनकी नाव सोमवार की रात आरा-छपरा पुल के नीचे पाया नंबर 4 से टकराकर नदी में डूब गई थी। उत्तर प्रदेश से आ रही थी इस नाव पर 12 लोग सवार थे। वे सभी बालू बेचकर बिहार आ रहे थे। नाव को डूबता देख इसपर सवार सभी लोग नदी में कूद गए। जिसमें से 6 लोग बह गए और 6 लोग तैरते हुए नदी के किनारों पर पहुंच गए। नदी की धारा में बहने वालों 6 लोगों में से एक दिनेश्वर भी थे।
मनेर से 5 किलोमीटर आगे दरवेशपुर गांव स्थित है। दरवेशपुर गांव के सामने एक दियारा है। इसी दियारा के पास डेंगी से दिनेश्वर को कुछ लोगों ने देख लिया और उसकी आवाज भी सुन ली। वहां मौजूद राकेश दूबे, अल्टा राय और रंजीत राय नामक व्यक्ति ने दूर से ही जिनेश्वर को नदी में लकड़ी के कट्टर के सहारे तैरता हुआ देख लिया था। जिसके बाद उसे उन लोगों ने नदी से बाहर निकाला।
इस दौरान दिनेश्वर सही से बोल भी नहीं पा रहा थे। उनके शरीर पर जोक लिपटे हुए थे। भूख से तड़प रहे दिनेश्वर को नदी निकालने के बाद अपने घर ले गए और खाने को चना दिया।उसके बाद फिर उन्हें रोटी खिलाई गई। लोगों ने फिर उनके शरीर की मालिश करवाया। जिसके बाद उसके शरीर में थोड़ी सी जान आई।
ठीक होने के बाद जिनेश्वर ने बताया कि वह नदी से बाहर निकलने के बाद वह आधी रात को वहां पर मौजूद टापू की झाड़ में घूमते रहे। सुबह हुई तो वह पेड़ की टहनियों पर चढ़कर आसपास देखते रहे कि शायद कोई व्यक्ति वहां पर नजर आ जाए। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। उन्हें काफी दूर पर एक नाव दिखी तो उन्होंने उसे बुलाने के लिए चिल्लाना शुरू किया, लेकिन नाव तक उनकी आवाज नहीं पहुंच सकी।
धीरे धीरे दिन चढ़ने लगा और अंधेरा होने लगा। अंधेरे की डर के वजह से उन्होंने हिम्मत के साथ गंगा में उतरना मुनासिब समझा और नदी में तैरना शुरू कर दिया। भगवान ने उसकी सुन ली और किसी तरह से वह अपने घर पहुंच गए।
परिवार वालों को जब दिनेश्वर के बारे में सूचना दी गई तो वह खुशी से झूम उठे और जीकरण टोला पहुंचकर बुधवार को दिनेश्वर को अपने घर ले गए। दिनेश्वर जब घर पहुंचे तो उन्हें सही सलामत देखकर उनकी पत्नी खुशी से उछलने लगी और रोना शुरू कर दिया। दिलेश्वर की पत्नी के साथ साथ उनकी बेटी और बेटा भी उनसे लिपट कर जोर जोर से रोने लगे। फिर आसपास के लोगों ने सबको शांत कराया। फिलहाल दिनेश्वर अपने परिवार के साथ हैं और स्वस्थ हैं।