शुभम कुमार, पटनाबड़ी आपराधिक घटनाओं की जांच में जिस तरह सीसीटीवी, टेक्निकल टीम और एसआइटी की अहम भूमिका होती है. ठीक उसी तरह डॉग स्क्वायड में शामिल श्वान भी कई ब्लाइंड केस को सुलझा कर अपना लोहा मनवाते हैं. पटना पुलिस के पास डॉग स्क्वायड में लेब्रा, जर्मन शेफर्ड समेत अन्य नस्ल के कुल 26 कुत्ते हैं. इनमें से कुछ खास कुत्तों की अपनी विशेषता है. एक्सप्लोसिव से लेकर शराब खोजने तक के लिए अलग डॉग्सजानकारी के अनुसार एक्सप्लोसिव पकड़ने में कुत्ता शेरू, माला, जूली, मेघा, छिना और चिंकारा आगे हैं, तो अपराधियों को ट्रैक कर जेल की सलाखों तक पहुंचाने में हीरा, सिंभा, माधवी और ड्यूक का कोई जोड़ नहीं है.

यही नहीं शराबबंदी के बाद लिकर के कई बड़ी खेप और जमीन के अंदर दबी शराब को हंटर, लकी और मैडी खोज निकालते हैं. इसके अलावा नारकोटिक्स के लिए रिंगो ने कई कांडों में मदद की है. शेरू, हीरा और हंटर कई बड़े-बड़े कांडों के उद्भेदन में अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं, जिसके लिए तीनों को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है.

डॉग स्क्वायड के अधिकारी रामेश्वर सिंह ने बताया कि सभी श्वान की अलग-अलग ताकत है और कई कांडों के उद्भेदन में अपना लोहा मनवाया है.कार्यक्रम से पहले शेरू, सिंभा और हंटर करते हैं जांचबड़े-बड़े कार्यक्रमों में वरीय पदाधिकारियों के निरीक्षण के दौरान शेरू, सिंभा और हंटर शामिल होते हैं. तीनों पूरे कार्यक्रम स्थल की बारीकी से जांच करते हैं. इस दौरान तीनों ने कई संदिग्ध वस्तुओं को भी ढूंढ निकाला, जिसके बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर कमियों को दूर किया है.

बिहार में अलग-अलग रेंज में डॉग स्क्वायड की अलग-अलग यूनिट बनायी गयी है. इसमें बेतिया, छपरा, मुजफ्फरपुर, राजगीर, सहरसा, भागलपुर, गया, पूर्णिया और पटना शामिल हैं. इन सभी जिलों में कई सारे स्निफ

पटनाबड़ी आपराधिक घटनाओं की जांच में शुभम कुमार ने बताया है कि डॉग स्क्वायड की अहम भूमिका होती है। इसमें विभिन्न नस्ल के कुल 26 कुत्ते शामिल हैं जो विभिन्न कार्यों के लिए प्रशिक्षित हैं। ये कुत्ते अपराधियों को ट्रैक करने, बम और शराब खोजने, दबी शराब निकालने और नारकोटिक्स के लिए मदद करते हैं। शेरू, माला, जूली, मेघा, छिना और चिंकारा शराब और बम की खोज में विशेषज्ञ हैं, जबकि हीरा, सिंभा, माधवी और ड्यूक अपराधियों को ट्रैक करने में महारत हासिल कर चुके हैं। इन दिनों पटना में डॉग स्क्वायड में हैंडलर की कमी होने के चलते कुछ संगठनों ने मदद की है। हर महीने एक कुत्ते पर डेढ़ लाख रुपये खर्च होते हैं।

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