जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवाओं में क्या अंतर होता है? – आप सभी जेनेरिक दवाओं के बारे में तो जानते ही होंगे ओर यह भी जानते होंगे कि जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवा की तुलना में काफी सस्ती आती है। लेकिन जेनेरिक दवा दवाओं को लेकर काफी कंफ्यूजन होता है जैसे कि इन जेनेरिक दवा ओर ब्रांडेड दवा में क्या अंतर होता है, क्या जेनेरिक और ब्रांडेड दवा की गुणवत्ता में फर्क होता है? और यह जेनेरिक दवा कहा मिलती है? तो चलिए जानते है इन सभी सवालों के जवाब….
ब्रांडेड दवा क्या होती है?
ब्रांडेड दवा उस दवा को कहा जाता है जिसे कोई कंपनी बनाये और अपने नाम से बेचे। जैसे दर्द और बुखार में काम आने वाली पेरासिटामोल (Paracetamol) को क्रोसिन के नाम से बेचा जाता है तो ये यह ब्रांडेड दवा हुई। आमतौर पर जब कोई दवाई कंपनी किसी नई दवा की खोज करती है तो वह उस दवा का पेटेंट अपने नाम से करवाती है और ये पेटेंट लगभग 20 सालों के लिए होता है। अब जब तक उस दवा का पेटेंट उस कंपनी के पास है तब तक उस दवाई का बनाने या निर्माण करने और उस दवा आप आगे शोध करने के अधिकार सिर्फ खोज करने वाली कंपनी के पास होता है, या फिर ऐसा वो कंपनी कर सकती है जो उस दवा को खोज करने वाली कंपनी से पेटेंट खरीद ले या उसके निर्माण के अधिकार प्राप्त कर ले। बता दे कि इन अधिकारों के बदले में खोज करने वाली दवा को रॉयल्टी दी जाती है।
जेनेरिक दवा क्या होती है?
जेनेरिक दवाएं क्या होती है तो आपको बता दे कि कोई भी दवा एक तरह का केमिकल या साल्ट होती है। कंपनियां रिसर्च के बाद अलग अलग बीमारियों के लिए इन्हें बनाती है। लेकिन आपको बता दे कि जेनेरिक दवा जिस साल्ट या केमिकल से बनी होती है उसी के नाम से जानी जाती है। इसे ऐसे समझा जा सकता है बुखार में काम आने वाली पेरासिटामोल (Paracetamol) अगर कोई कंपनी इसी नाम से बेचती है तो वह जेनेरिक दवा कहलाती है। अगर इसे किसी ब्रांड जैसे कि क्रोसिन के नाम से बेचा जाते तो यह ब्रांडेड दवा हो जाती है। आपको शायद ये बात जानकर हैरानी हो कि बुखार, खासी ओर बदन दर्द जैसी परेशानी जो हमे आये दिन होती रहती है इनके लिए जेनेरिक दवा सिर्फ 10 पैसे से लेकर डेढ़ रुपए प्रति टैबलेट तक में मिल जाती है। जबकि ब्रांडेड दवा में इनकी कीमत डेढ़ रुपए से लेकर 35 रुपए तक पहुंच जाती है।
क्या जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा की गुणवत्ता/क्वालिटी में अंतर होता है?
अक्सर कई लोगो को लगता है कि जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा की गुणवत्ता/क्वालिटी में अंतर होता है। लेकिन आमतौर पर इनमें कोई अन्तर नहीं होता है, जानकारी के लिए बता दे कि देश में ऐसा कोई डाटा उपलब्ध नहीं है जिससे कि ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता/क्वालिटी की तुलना की जा सके। साथ ही बता दे कि गैर-ब्रांडेड दवा खासकर जो सरकार द्वारा खरीदी जाती है उनकी गुणवत्ता में कमी देखी गयी है।
जेनेरिक दवा सस्ती क्यों होती हैं?
जेनेरिक दवाएं सस्ती होती है और ये बात हम सभी जानते है लेकिन इन दवाओं के सस्ते होने का कारण क्या है तो आपको बता दे ऐसा इसलिए क्योंकि क्योंकि इनके प्रचार प्रसार पर पैसा खर्च नही किया जाता है। बता दे कि फार्मा कंपनियां ब्रांडेड दवाइयों की रिसर्च पर, पेटेंट पर, और विज्ञापन पर बहुत सारा पैसा खर्च करतीं हैं। ये एक बड़ा कारण है ब्रांडेड दवाओं के महंगे होने का। जबकि जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार द्वारा तय की जाती हैऔर इसके प्रचार-प्रसार पर ज्यादा खर्च नही किया जाता है। बता दे कि जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड के मुकाबले 10 से 20 गुना तक सस्ती होती हैं। तो इस वजह से जेनेरिक दवाएं सस्ती होती है।
जेनेरिक दवा कहां मिलती है?
देश मे प्रधानमंत्री जन औषधि योजना से जुड़े प्रधानमंत्री जन औषधि पर जेनेरिक दवाएं बेची जाती है और यहां पर ये दवाएं कम कीमत पर मुहैया कराई जाती है। बता दे कि देशभर में करीब 5395 जन औषधि केंद्र हैं और जहां पर कैंसर सहित कई बीमारियों की करीब 900 दवाइयां मिलती हैं। साथ ही आप अपने डॉक्टर से भी जेनेरिक दवा लिखने को कह सकते हैं और फिर आप मेडिकल स्टोर्स या केमिस्ट से भी ब्रांडेड की जगह अच्छी क्वालिटी की जेनेरिक दवा की मांग सकते हैं।
तो अब आपको अच्छे से समझ गया आ गया होगा कि जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा में क्या अंतर होता है, ये सस्ती क्यों होती है, कहा मिलती है और क्या इनकी क्वालिटी में अंतर होता है या नही। तो आशा करते हों ये जानकारी आपके के लिए काम की साबित होगी, धन्यवाद..