बचपन में बच्ची का जननांग सटा हुआ था। मां-बाप ने डॉक्टर को दिखाने के बजाय किन्नर मान लिया। उसका नाम मनीष रख कर समाज में लड़का बताने लगे। करीब 23 साल तक किन्नर की मन:स्थिति से गुजरने के बाद मनीषा को एक ऑपरेशन के बाद वास्तविक पहचान मिली। मनीष अब मनीषा बनकर खुशहाल जिंदगी बिताने की राह पर चल पड़ी है। डाक्टर के अनुसार वह अब वह मां बन सकती है। भागलपुर जिले के सिकंदरपुर मोहल्ले के एक टोले में 23 साल पहले एक बच्ची ने जन्म लिया। जननांग विकसित न होने के कारण घर वालों ने उसे थर्ड जेंडर मानकर उसका नाम मनीष रख दिया। जब वह 13-14 साल की हुई तो उसके नारी अंग विकसित होने लगे। तब भी मनीषा खुद को किन्नर समझ लड़कों की तरह कपड़े पहनकर जिंदगी गुजारती रही। मां-बाप भी लोकलाज के भय से किसी से चर्चा नहीं करते थे। बकौल मनीषा, वह भी अपने दोस्तों के बीच खुल कर नहीं कह पाती थी और हमेशा सभी से कटी-कटी रहती थी। यही कारण है कि पांचवीं के बाद उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
अब ख्वाब पूरे करूंगी: मनीषा का कहना है कि लड़कियों की तरह संजना-संवरना व कपड़े पहनने की ख्वाहिश अब वह पूरी कर सकेगी। अब वह बेझिझक अपनी जिंदगी गुजार सकेगी। पहले इस डर से वह ऐसा नहीं पाती थी। समाज हर बात में आड़े आता था। मनीषा शादी करेगी लेकिन जल्दबाजी में नहीं। दुकान मालिक ने दिखायी इलाज की राह बकौल मनीषा, वह अपने तीन भाइयों व चार बहनों में सबसे बड़ी है। इसलिए उसे शहर के खलीफाबाग स्थित एक दुकान में बतौर सेल्स ब्वाय नौकरी करनी पड़ी। उसे मई के आखिरी सप्ताह में पहली बार मासिक धर्म शुरू हुआ तो घबरा गयी और अपनी चिंता से दुकान मालकिन सुशीला नेवटिया को अवगत कराया। सुशीला ने यह बात अपने पति श्याम सुंदर नेवतिया को बतायी। श्याम सुंदर नेवतिया मनीषा को लेकर शहर की महिला चिकित्सक डॉ. सरस्वती पांडेय की क्लीनिक पर गये।
ढाई दशक में इस तरह का तीसरा मामला इलाज करने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सरस्वती पांडेय ने बताया कि जब मनीषा (मनीष) को उसके पास इलाज के लिए लाया गया तो उसके स्तन विकसित अवस्था में थे। मासिक धर्म आने से स्पष्ट हो गया था कि वह लड़की ही है। जब उसका अल्ट्रासाउंड कराया गया तो उसमें गर्भाशय विकसित पाया गया। सिर्फ योनि मार्ग सटा हुआ था। फिर ऑपरेशन के जरिये उसे सही आकार दिया गया। अब वह न केवल पूर्ण रूप से लड़की है, बल्कि मां भी बन सकती है। डॉ. पांडेय ने इस ऑपरेशन व इलाज के लिए कोई फीस नहीं लिया। अभी वह नियमित रूप से रूटीन जांच के लिए आती है। बकौल डॉ. पांडेय, मनीषा जैसा केस उनकी जिंदगी में तीसरी बार आया है। इसके पूर्व जब वह पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से पीजी (1993-97 बैच) कर रही थी, तब इस तरह के दो मामले उन्होंने हैंडल किये थे। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सरस्वती पांडेय ने बताया कि अगर मनीषा को बचपन में ही उसके मां-बाप डॉक्टर को दिखाये होते तो उसे इतने साल तक लड़की होने के बावजूद किन्नर की जिंदगी नहीं जीनी पड़ती।