एक बात तो जाहिर तौर पर साफ़ है कि जब आपसे या फिर किसी से भी पूंछा जाए कि भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन था तो सबके दिमाग में एक ही नाम आएगा पंडित जवाहरलाल नेहरू. लेकिन हम आपको एक ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं जो बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हिंदुस्तान सरकार के पहले प्रधानमंत्री बरकतुल्ला खान थे.
मामला ज्यादा पेंचीदा न करते हुए हम आपको बताते हैं कि जब देश आजाद नहीं हुआ था तब हिंदुस्तान में अस्थायी सरकारों का गठन हुआ था और इसी सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे बरकतुल्ला खान और वहीँ राष्ट्रपति महेंद्र प्रताप को चुना गया था. आज हम आपको बरकतुल्ला खान के बारे में बताने जा रहे जो कोई नहीं जानता.
कई भाषाओ का इल्म था बरकतुल्ला को
7 जुलाई 1854 को मध्यप्रदेश के भोपाल में एक संपन्न खानदान में इनका जन्म हुआ था. इतिहास से ऐसी जानकारी मिलती है कि इनके पिता मुंशी कुदरतुल्ला भोपाल रियासत में काम करते थे.बरकतुल्ला ने अपनी शुरुवाती तालीम भोपाल के ही सुलेमानिया स्कूल से ही हासिल की. यहाँ उन्हें अरबी और फारसी की खासी तालीमात हासिल हुई. जब इनके माँ-बाप का इंतकाल हो गया और इनकी इकलौती बहन का निकल हो गया तो इन्होने भोपाल शहर को अलबिदा कह दिया और मुंबई आकर बस गये. यहाँ इन्हें काफी मसक्कत करनी पड़ी जिसके चलते इन्होने बच्चों को ट्यूशन भी दिया और खुद अंग्रेजी की तालीम हासिल करने लगे. यहाँ से फिर बाद में ये आगे की तालीम लेने इंग्लॅण्ड चले गये.
अंग्रेजो के शासन को ध्वस्त करने का लिया था संकल्प
इनके जीवन में बड़े पैमाने पर परिवर्तन इंग्लॅण्ड जाकर ही आया. वहां उन्होंने द क्रिसेन्ट और पत्रिका द इस्लामिक वर्ल्ड के लिये बतौर सह संपादक काम किय. यहाँ उनकी मुलाकात उन क्रांतिकारियों से हुई जो भारत की स्वतंत्रता में विदेशो में रहकर योगदान दे रहे थे. यहाँ से उनको अपने जीवन का लक्ष्य देश को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराना बन गया. इसी संकल्प को साथ लेकर वो स्वदेश लौट आये और उनकी मुलाकात राजा महेंद्र प्रताप से हुई जो उस दौर में भारत की स्वाधीनता की मशाल जलाये हुए थे.
जब इनकी मुलाकात उनसे हुई तो वो इस आन्दोलन को और मजबूती देने के लिए जापान चले गये जो तात्कालिक दौर में अंग्रेजो से लड़ने के लिए क्रांतिकारियों का अड्डा माना जाता था ! वहां पर इन्होने शिक्षक के तौर पर भारतीय भाषाओ की तालीम दी लेकिन दुर्भाग्य से अंग्रेजी जासूसों को इस बात की भनक लगई और इन्हें जापान छोडके अमेरिका जाना पड़ा.
ग़दर पार्टी के फाउंडर मेम्बर थे
जब ये अमेरिका पहुंचे तो यहाँ उन्होंने रहने वाले उन भारतीयों से संपर्क किया जो आजादी की लड़ाई में भागीदार थे. 1913 में एक क्रांतिकारी घटना का बीज पड़ रहा था और सैन फ्रांसिस्को में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ‘ग़दर पार्टी’ का निर्माण किया जा चुका था. बरकतुल्ला इनके फाउंडर मेम्बर्स में से एक थे. इस पार्टी का उद्देश्य सशस्त्र क्रांति से आजादी हासिल करना था. इस पार्टी का स्लोगन तनख्वाह- मौत, इनाम – शहादत, पेंशन – देश की आजादी हुआ करता था. इन्होने ‘हिन्दुस्तानी गदर’ नाम के पेपर का संपादन कार्य भी किया.
अमेरिका में भी भारतीयों में बोया क्रांति का बीज
जब ये अमेरिका में थे तो वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों को सशस्त्र क्रांति के लिए प्रेरित कर रहे थे. 1915 में इन्हें अपने मित्र राजा महेंद्र प्रताप का एक खत मिलता है जो जर्मनी में रहकर क्रांति को बढ़ा रहे थे. 19 फरबरी 1915 में ही वो बर्लिन गये और वहां महेंद्र प्रताप और ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर बर्लिन समिति का गठन किया और सशस्त्र क्रांति की खातिर जमर्न मिशन की नीव डाली.
काबुल में ली थी प्रधानमन्त्री की शपथ
बात 1915 की है जब बरकतुल्ला अपने मित्र राजा महेंद्र प्रताप के साथ अफगानिस्तान के काबुल में पहुंचे. यहीं पर उन्होंने भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया और इसमें प्रधानमन्त्री बरकतुल्ला तथा राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप बने, इसके बाद बरकतुल्ला रूस चले गये जहाँ पर क्रेमलिन शहर में उनकी मुलाकात लेनिन से हुई. यहीं से उन्होंने २ साल तक क्रांति को हवा दी. इसके बाद वो वहां से ब्रसेल्स गये जहाँ पर साम्राज्य विरोधी सम्मलेन का हिस्सा बने. 1927 में वो जर्मनी से अमेरिका आगये जहाँ उनकी तबियत नासाज हो गयी और 27 सितम्बर 1927 में अमेरिका के शहर कैलिफोर्निया में उनका इंतकाल हो गया.