पापा, ये मुसलमान है ना। ट्रेन में सामने वाली बर्थ पर बैठी फॅमिली को देख कर बच्चे ने पिता से पूछा।
हां बेटा, पिता ने संक्षिप्त जवाब दिया
*इनके हाथ से कुछ मत लेना। माँ ने हिदायत दी।*
क्यों? बच्चे का छोटा सा सवाल। जो कभी हल नहीं हो सका।
क्यों क्या।
*ये मांस मछली खाने वाले लोग हैं।* *हमसे नफरत करने वाले लोग हैं।* *इनसे हमारी सालो की दुश्मनी है।*
माँ को जितना मालूम था, वह सरसरी लहजे में बच्चे को बोल गयी।
*बच्चा सोचता रहा कि हमारी इनसे दुश्मनी कब हो गयी।*
*ये तो आज ही मिले हैं।*
पिता ने बच्चे की माँ को डांटा। ये कोई जगह है , ये सब बातें करने की। हालांकि पिता की सहमति थी उन बातों पर जो माँ ने बच्चे से कही।
क्या करती फिर। कोई चीज लेकर खा लेता तो। *हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाता।* माँ ने खुद को स्पष्ट किया।
अच्छा। अब चुप करो। खाना आ गया है खा कर आराम करो सब।
खाना खा कर सभी यात्री लेट गए। *एकाएक बच्चे के पेट में तेज दर्द उठा*। बच्चे ने माँ को कराहते हुये कहा। माँ। पेट दुःख रहा है।
माँ ने सोचा । ट्रेन का खाना नहीं पच रहा होगा। थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा। लेकिन बच्चे की हालत बिगडती गयी। बच्चे की माँ और पिता असमंजस में थे कि क्या करें।
मुसलमान पुरुष यात्री की नींद खुली। देखा तो बच्चे की माँ रो रही थी। मुसलमान पुरुष ने अपनी पत्नी को उठाया कि पता करो। मोहतरमा क्यों रो रही है। लेकिन मुसलमान की पत्नी उठती उस से पहले ही उसे मालूम हो गया था कि बच्चा बीमार है और लगभग बेहोशी की हालत में है।
उसने बच्चे के पिता से कहा- *आपको ऐतराज ना हो तो बच्चे की नब्ज देख सकता हूँ।*
*मेरा आजमगढ़ में दवाखाना है। थोड़ी बहुत समझ है मुझे मर्ज की।*
बच्चे की माँ मुसलमान की और देख रही थी। पिता ने झट से बच्चे की बाजू मुसलमान के सामने कर दी।
आप इसे नीचे मेरी बर्थ पर सुलाईये। उसने अपना सूटकेस खोला तो वह दवाईयों की मेडिकल किट ही थी। मुसलमान यात्री की पत्नी भी जाग गयी थी।
*उसने बताया कि आपको डरने की जरुरत नहीं । ये डाक्टर है बहुत से मरीज इनके हाथ से ठीक हो कर गए।*
*अल्लाह को जान देनी है। जितना जिसका भला हो सके, ये करते हैं।* आप चिंता न करें बहन। बच्चा ठीक हो जाएगा।
*मुसलमान यात्री ने एक घंटा बच्चे का उपचार किया। उसे दवा खिलाई भी पिलाई भी। मुसलमान के हाथ का खाने के बाद बच्चा अब ठीक होने लगा था।*
मुसलमान ने कहा, बहन ये दवा रखो, तीन दिन सुबह शाम देना। पेट में अलसर है बच्चे के। तुरंत इलाज ना मिलता तो दिक्कत बढ़ जाती।
*बच्चे की माँ को आज जीवन की सबसे बड़ी ग्लानि हो रही थी कि नफरत का ज्ञान वह कहाँ से सीखी थी।*
उसने आँखों में आंसू लिए मुसलमान दंपति को धन्यवाद करने वाली नजर से एक बार देखा और बच्चे को गोद में लेकर फफक कर रो पड़ी।
*हमने क्या पा लिया हिन्दू या मुसलमां होकर!*
*आओ इन्सां से मोहब्बत करें इन्सां होकर!