कुछ मुख्य बिंदू

  • एम्स के सर्वे में 51% युवाओं ने स्विकारा- लॉकडाउन में छात्रों और युवाओं में मोबाइल-इंटरनेट एडिक्शन बढ़ा है।
  • पहले 10वीं से उपर कक्षा के छात्रों को इसकी लत लगी थी लेकिन अब 8वीं से कम उम्र के बच्चोम को भी लगने लगी है लत
  • यह जरूरी तो नहीं कि बच्चे सुबह से दोपहर तक मोबाइल या लैपटोप पर केवल पढ़ाई ही करते हैं।

लॉकडाउन के दौरान लोगों का ध्यान मोबाइल, लैपटौप जैसे एक्सपोजर की ओर ज्यादा बढ़ा है। लोग ऑनलाइन गेम्स, टीवी शो, वेब सीरीज, मूवी पर आज कल ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसका नतीजा रहा है कि लोगों को मोबीइल, लैपटौप का एडिक्शन हो गया है। केंद्र सरकार के दो शीर्ष एडिक्शन ट्रीटमेंट सेंटर के आकलन में यह बात सामने आई है कि, इस तरह के मरीज लगभग चार गुना तक बढ़े हैं। दिल्ली, मुंबई, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, बैंग्लुरु जैसे बड़े शहरों के अलावा आगरा, औरंगाबाद, मेहसाणा, सिक्किम, राजस्थान, हरियाणा व मध्यप्रदेश जैसे छोटे शहरों में भी बढ़ रहे हैं।
बता दें कि पहले 10वीं से उपर कक्षा के छात्रों में मोबाइल एडिक्शन की समस्या देखने को मिलती थी परंतु कोविड-19 के कारण लागू इस लॉकडाउन के बीच 8वीं से कम कक्षा के छात्रों में भी यह समस्या देखने को मिल रही है। ब्रिज बॉचिंग यानी 120 मिनट से अधिक टीवी देखना बढ़ा है। डिजिटल बर्न आउट यानी थकान, डूम सर्फिंग यानी कोरोना सर्चिंग जैसी समसेयाएं सामने आ रही है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि ऐसा जरुरी तो नहीं कि छात्र सुबह 8 बजे से दोपहर तक मोबाइल सा लैपटौप पर केवल पढ़ाई करते हैं। एम्स के बिहेवियरल एडिक्शन्स क्लीनिक के कंसल्टेंट इंचार्ज डॉक्टर यतन पाल सिंह बल्हारा का कहना है कि महिलाएं भी सोशल मीडिया, वेब सीरीज और मूवी के लिए अधिक समय मोबाइल और लैपटौप पर  ही बिता रही हैं। लोग मोबाइल- कंप्यूटर पर अधिक समय तक एक्टिव रपते हैं।

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