विदेशों में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी करने वाला गिरोह सक्रिय है। इंटरपोल ने भागलपुर पुलिस से कनाडा बेस्ड कंपनी मार्शल हॉर्न के बारे में जानकारी मांगी है। कनाडा के रॉयल फाउंडेड पुलिस ने इंटरपोल, नई दिल्ली को जानकारी दी थी कि एक जून 2017 से 15 सितंबर 2017 के दौरान कनाडा की मार्शल हॉर्न रेपसॉल तेल व गैस कंपनी के कर्मचारियों की पहचान व अन्य जानकारी चोरी कर कंपनी के नाम पर फर्जी तरीके से रोजगार उपलब्ध कराने का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इस फर्जी कंपनी के झांसे में आकर कई भारतीय फंस चुके हैं। इस तरह की कंपनी से जुड़े लोग और आवेदक का पता कर इंटरपोल ने रिपोर्ट मांगी है। भागलपुर समेत आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग गल्फ और सऊदी में रहते हैं।
 

अलर्ट: इंटरपोल ने मांगी कनाडा की कंपनी मार्शल हॉर्न के बारे में जानकारी, फर्जी कंपनी के झांसे में आकर फंस चुके हैं कई भारतीय
यहां के युवकों को मलेशिया में बनाया जा चुका है बंधक

कुछ वर्ष पूर्व सबौर और मुंगेर के दो युवकों को मलेशिया में बंधक बना लिया गया था। दोनों से गुलामों की तरह काम करवाया जा रहा था। युवकों को नौकरी और अच्छी सैलरी का झांसा देकर दो दलालों ने काम के लिए विदेश भेजा था। जिन्हें बंधक बनाया गया था, उसमें सबौर थाना क्षेत्र के राजपुर गांव निवासी मो. करीम अख्तर और सलेमपुर, मुंगेर निवासी संजीत साह शामिल थे। करीम के पिता डॉ. शमीमउद्दीन ने अपने बेटे की सकुशल भारत वापसी के लिए भारत और कुआलालंपुर हाई कमीशन को पत्र लिखा था, तब विदेश मंत्रालय ने संज्ञान लिया था।

अच्छी सैलरी और सुविधा का दिखाया जाता है सब्जबाग
एमएन ग्लोबल मैनेजमेंट सर्विस (मसाई जोहार, मलेशिया-81750) नामक कंपनी में ऑफिसर पद पर करीम की बहाली का झांसा दिया गया था। उसे 40 हजार वेतन देने की बात कहीं गई थी। नौकरी लगाने के एवज में मो बबन (पिता मो नाजिर, ग्राम छोटी लड़की, सीवान) और एक अन्य यूपी के दलाल ने 90 हजार रुपए भी लिए थे। मलेशिया जाने के लिए हवाई खर्च करीम ने खुद उठाया था। नौकरी और अच्छी सैलरी के अलावा करीम को रहना, खाना, छुट्टी आदि देने की भी बात कहीं गई थी। वहां जाकर करीम को पता चला कि 90 हजार ठग लिए।

गुलामों की तरह कराया जाता है काम
बाद में पता चला था कि मलेशिया में एमएन ग्लोबल मैनेजमेंट सर्विस नामक की कोई कंपनी ही नहीं है। दोनों दलालों ने साफिया ट्रेवल नामक की एक एजेंसी भी खोल रखी थी, जिसके जरिए बेरोजगारों को विदेश भेजते थे। इन दोनों दलालों का चाइनीज ठेकेदारों से सांठ-गांठ था। करीम को मलेशिया में एक फैक्ट्री में बंधुआ मजदूर बना लिया गया था। वहां उसे 40 हजार के बदले सात हजार वेतन मिलता था। 20 घंटे तक फैक्ट्री में जानवरों की तरह उससे काम करवाया जाता था। आधा पेट भोजन और और कुछ घंटे सोने के लिए दिया जाता था। एक कमरे में तीस भारतीय मजदूरों को भेड़-बकरियों की तरह रखा जाता था। इन लोगों को मात्र एक शौचालय दिया गया था।

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