देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ के मामले में नए चीफ इलेक्शन कमिश्नर ओम प्रकाश रावत का बड़ा बयान आया है. उन्होंने मंगलवार को पद संभाला. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए एक कानूनी ढांचे की जरूरत है. इसे तैयार करने में काफी वक्त लगेगा.

उन्होंने कहा, “चुनाव प्रक्रिया में बदलाव के लिए जरूरी लीगल फ्रैमवर्क (कानूनी ढांचा) होना चाहिए. जब तक तय नहीं होता, हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं। इसे तैयार करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा, जिसमें काफी वक्त लगेगा. हम बग्घी को सिर्फ घोड़े के ऊपर नहीं छोड़ सकते हैं.जब कानूनी ढांचा तैयार होगा, चुनाव आयोग इसे लागू कर देगा. ईसी संवैधानिक के मुताबिक काम करता है. हमें सिर्फ नियमों के तहत इलेक्शन कराने की जिम्मेदारी मिली है.”
क्या 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए जाएंगे? इस सवाल के उत्तर में रावत ने कहा कि अगर अभी मैं इसका जवाब दूंगा तो यह गलत होगा.

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी सहित बीजेपी के कई नेता एक साथ चुनाव के बात कह चुके हैं. पीएम ने एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं पहला व्यक्ति नहीं हूं, जिसने चुनाव साथ कराने की बात कही हो. भारत के पूर्व राष्ट्रपति, संविधान के जानकार लोग भी यही बात कह चुके हैं. कुछ व्यावहारिक बातें हैं जिनके बारे में हमें सोचना चाहिए. भारत की डेमोक्रेसी बहुत मेच्योर हुई है. 67 के पहले हमारे देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ होते थे. जनता दोनों जगह अलग-अलग फैसले भी करती थी. भारत के मतदाताओं की समझदारी पर शक करने की जरूरत नहीं है.

पीएम ने यह भी कहा था, “2009 में लोकसभा का चुनाव हुआ 1100 करोड़ खर्च हुआ. 2014 में 4 हजार करोड़ खर्च हुआ. आज स्थानीय निकाय के चुनाव की मतदाता सूची अलग, असेंबली की अलग, लोकसभा की अलग है. आज टेक्नोलॉजी के युग में मतदाता सूची एक नहीं बन सकती है क्या? चुनाव में लोकरंजक अर्थनीति भी चलती है. मैं इतना दूंगा, वो इतना देंगे. लोकसभा विधानसभा एक साथ होंगे तो खर्चा, समय बचेगा. लाखों सिक्युरिटी के लोग 100-150 दिन चुनावी व्यवस्थाओं में लगते हैं. मैं मानता हूं कि एक तारीख तय हो और साथ चुनाव हों.”

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