अहमद पटेल के जीतने के बाद उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस (विपक्ष) को अपने गिरेबान में झांकने और २०१९ के चुनाव के लिए रणनीति बदलने की सलाह दी है। उनका मानना है कि अहमद पटेल की जीत इतनी कठिन तो होनी ही नहीं चाहिए थी।अहमद पटेल का कहना है कि यह जीत सिर्फ मेरी नहीं है।

 यह खुल्लमखुल्ला धनबल व पशुबल और स्टेट मशीनरी के दुरुपयोग की शिकस्त है। इससे पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। लेकिन पी. चिंदबरम का कहना है कि मौजूदा सत्तापक्ष के खिलाफ जनता के बीच से काउंटर नैरेटिव निकलेगा और वही इसको नेस्तनाबूद कर देगा। अब अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है लेकिन ऊपर के बयान इस चाणक्य की काबिलियत पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं।

अहमद पटेल के सामने १९९५ के बाद कांग्रेस कभी गुजरात में चुनाव नहीं जीती। अहमद पटेल इसी राज्य से आते हैं। अहमद पटेल के रहते ही कांग्रेस नीति यूपीए टू सरकार को भाजपा ने  भ्रष्टाचार का पर्यायवाची साबित करते हुए कांग्रेस के खिलाफ ऐसा मजबूत नैरेटिव खड़ा किया कि कांग्रेस अब तक उसके बरक्स कुछ भी खड़ा नहीं कर पा रही। गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ जबरदस्त असंतोष पिछले चार साल में दिखा, लेकिन क्या कांग्रेस उसको नेतृत्व दे पायी? 

उल्टे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेसी विधायक पाला बदलने में लग गये। यह किसकी विफलता है? कांग्रेस नेतृत्व की और कांग्रेस नेतृत्व के सबसे खास सलाहकार हैं अहमद पटेल। अगर चिदंबरम की तरह कांग्रेस नेतृत्व और अहमद पटेल साहब भी यह मानकर चलेंगे कि जैसे दो विधायकों की गलती से उनकी नैया राज्यसभा चुनाव में पार लग गई, उसी तरह सत्तापक्ष की तरफ से कोई गलती होगी और २०१९ में कांग्रेस की नैया पार लग जाएगी, तो इनकी वो गत हो सकती है जिसकी कल्पना शायद कांग्रेस के विरोधियों ने भी न की हो।

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