मामा बालेश्वर दयाल जदयू के लिए भी अहम हैं. वह न सिर्फ समाजवादी आंदोलन के अगुआ थे, बल्कि वर्तमान चुनाव चिह्न तीर का सुझाव भी उन्होंने ही दिया था. आदिवासी बहुल बांसवाड़ा में भीलों के उत्थान में लगे मामा बालेश्वर दयाल ने भीलों के तीर को ही जदयू का चिह्न बनाने का सुझाव दिया. उनके सुझाव को मानते हुए जदयू ने तीर को अपना पार्टी चिह्न के रूप में अपना लिया. इस संबंध में जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने बताया कि जब जनता दल से जदयू अलग हो रहा था, तो मामा बालेश्वर दयाल के सुझाव पर ही जदयू ने तीर के निशान को पार्टी के चिह्न के रूप में ग्रहण कर लिया था.

कौन हैं मामा बालेश्वर दयाल
मामा बालेश्वर दयाल का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में 1905 में स्वतंत्रता सेनानी व गांधीवादी कार्यकर्ता शिवशंकर लाल के घर में हुआ था. सामाजिक सेवा में रुचि होने के कारण वह मध्यप्रदेश आ गये और वर्ष 1937 में उन्होंने झाबुआ जिले में ‘बामनिया आश्रम’ की नींव रखी. इसी साल यहां भीषण अकाल पड़ने पर ईसाई मिशनरी भी राहत कार्य में योगदान देने के लिए आये. उन्होंने देखा कि ईसाई मिशनरियों की रुचि सेवा में कम और धर्मांतरण में ज्यादा है. इसके बाद मामा बालेश्वर दयाल ने पुरी के शंकराचार्य की सहमति से भीलों को क्रॉस के बदले जनेऊ दिलाना शुरू किया. इसके बाद वह भील जाति की कुरीतियों के खिलाफ अभियान खड़ा किया. मामा बालेश्वर दयाल ने आश्रम से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका ‘गोबर’ का संपादन भी किया है. बाद में वह राजस्थान में बांसवाड़ा और डुंगुरपुर जिलों में भीलों के उत्थान के लिए अपनी कर्मभूमि बना डाली.

मामा बालेश्वर दयाल आर्य समाज और सोशलिस्ट पार्टी से भी जुड़े रहे. उनके आश्रम में सभी लोगों का आना-जाना होता था. यहां आनेवाले लोगों में सुभाषचंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव जैसे लोग भी शामिल थे. इनके अलावा राजनीतिज्ञ भी इनके आश्रम में आते थे. इनमें जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया, चौधरी चरणसिंह, जार्ज फर्नांडीस जैसे नेता प्रमुख थे.

समाजवादी विचारधारा के बालेश्वर दयाल द्वारा भीलों के लिए किये गये उनके कार्यों के कारण समाजवादियों के वोटबैंक के रूप में वह स्थापित हो गये. वर्ष 1973 में वह अखिल भारतीय संयुक्त समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने. बाद में वह मध्य प्रदेश से 1977 और 1984 के बीच राज्यसभा में सदस्य चुने गये.

वर्ष 26 दिसंबर, 1998 को आश्रम में उनका देहावसान हो जाने के बाद आश्रम में उनकी समाधि बना कर प्रतिमा स्थापित की गयी. प्रतिमा के अनावरण के मौके पर तत्कालीन खाद्य मंत्री शरद यादव और रेलमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे.
INPUT: PKM

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