पिछले काफी वक़्त से केवल हिन्दुओं के खिलाफ बड़े-बड़े फैसले सुना रहे व् अन्य फैसलों को लगातार ताले जा रहे सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति कोविंद ने जबरदस्त लताड़ लगाई है. विधि दिवस की पूर्व संध्या को आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायपालिका को खरी-खरी सुनाई, साथ ही लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी खुद को सरकार से भी ऊपर समझने वाले जजों के दिमाग ठिकाने लगा दिए.

राष्ट्रपति कोविंद की न्यायपालिका को फटकार !

राष्ट्रपति कोविंद ने न्याय में होने वाली देरी, गरीबों को न्याय मिलने में आने वाली समस्याओं और पारदर्शिता को लेकर न्यायपालिका फटकार लगाई. गौरतलब है कि दिवाली पर पटाखे बैन जैसे फैसले फ़टाफ़ट लेने वाले कोर्ट भ्रष्टाचारी नेताओं के फैसलों को सालों-साल तारीख पर तारीख देते जाते हैं. अमीर तो गरीबों को अपनी गाडी से कुचल कर भी साफ़ बच निकलते हैं और गरीबों को न्याय मिलना तो लगभग नामुमकिन ही हो चुका है.
बता दें कि विधि दिवस के अवसर पर शनिवार को दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. यहाँ राष्ट्रपति कोविंद ने बहुत ही सटीक लहजे में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि, ‘सार्वजनिक जीवन शीशे के घर की तरह है. इसमें पारदर्शिता और निगरानी की मांग लगातार उठ रही है. न्यायिक व्यवस्था को इसके प्रति बहुत सतर्क होना चाहिए.’

भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है सुप्रीम कोर्ट !

माननीय राष्ट्रपति जी ने ऐसा सुप्रीम कोर्ट में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर कहा था. गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में जजों के नाम पर रिश्वतखोरी का मामला आया था. जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के अंदर ही माहौल गर्म था. भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी अदालतों को फटकार लगाते हुए माननीय राष्ट्रपति ने गरीबों को न्याय मिलने में कठिनाई, देरी और न्यायिक व्यवस्था में निचले वर्ग के कम प्रतिनिधित्व का भी सवाल उठाया. उन्होंने अपील की कि सरकार के तीनों अंगों को मिलकर इसका रास्ता निकालना चाहिए.
उन्होंने खासतौर से महिलाओं के प्रतिनिधित्व का उल्लेख किया और कहा हर चार न्यायाधीशों में से केवल एक महिला होती है. उन्होंने कहा कि तीनों अंगों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अच्छे व्यवहार का मॉडल बनना होगा.

कोलेजियम सिस्टम के दुरूपयोग से कोंग्रेसी चाटुकार बन जाते हैं जज

वहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कोलेजियम सिस्टम को बदलने की जरूरत बताई, जिसका कोर्ट बहुत सख्ती से बचाव करता रहा है. दरअसल अंग्रेजों द्वारा कोलेजियम सिस्टम इसलिए बनाया गया था, ताकि गुलाम भारत में अपनी मर्जी के लोगों को आसानी से जजों के पद पर नियुक्ति दिलवा सकें. आजाद होने के बाद भी पिछले 60 सालों में कांग्रेस ने इस सिस्टम को नहीं बदला और इसका दुरूपयोग करके अपने पालतू चाटुकारों को सुप्रीम कोर्ट व् हाई कोर्ट्स में जज बनवाते रहे.
मोदी सरकार इसे ख़त्म करके इसकी जगह और भी पारदर्शी सिस्टम लाने के पक्ष में है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट सरकार को ऐसा करने नहीं दे रही है. मगर अब राष्ट्रपति कोविंद के तेवर देखकर लगता है कि न्यायपालिका में जल्द ही बदलाव देखे जा सकते हैं.
इसके अलावा केंद्र सरकार में कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने भी न्यायिक सक्रियता का सवाल उठाया. सुमित्रा महाजन और कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कोलेजियम सिस्टम और न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाए. महाजन ने कहा कि इसमें बदलाव की जरूरत है.

सरकार के कामों में दखल देना बंद करे न्यायपालिका

कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने बार-बार याद दिलाया कि न्यायपालिका को अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखनी होगी. उन्होंने न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका को नीति निर्धारण के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए. दरअसल देश में जहाँ एक ओर लाखों-करोड़ों केस पेंडिंग हैं, वहीँ सुप्रीम कोर्ट सरकार के कामों में हस्तक्षेप में ही व्यस्त रहता है. जबसे मोदी सरकार आयी है, तब से सरकार को क्या-कैसे करना चाहिए, इसमें अदालतों के जज अपनी राय जबरदस्ती ही थोपते आये हैं.
सरकार की नीतियों के विरोध में भी न्यायपालिका से आवाजें लगातार उठती आ रही हैं. चौधरी ने कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि नियुक्तियों पर बारीकी से काम हो. वहीँ सम्मेलन में मौजूद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बात समझने की जगह उलटा अपनी ही सफाई देना शुरू कर दिया.

बचाव में उतरे मुख्य न्यायाधीश

दीपक मिश्रा ने कहा कि प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका का संविधान प्रदत्त कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका न तो नीति बनाती है और न ही उसमें हस्तक्षेप की मंशा होती है. लेकिन, अगर किसी नीति से आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो उसकी व्याख्या करना हमारा कर्तव्य है.
हालांकि ये पूरा सच नहीं है, सच तो ये है कि कोलेजियम सिस्टम का दुरूपयोग करके राजनेता अपने पिट्ठुओं को जज बनवाते आये हैं, यही वजह है कि कभी देश में किसी भ्रष्टाचारी नेता को शायद ही सजा होती हो. जज बनवाने के लिए रिश्वत देने तक के मामले सामने आते रहे हैं.

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