बिहार में उपचुनाव के बाद से केंद्रीय मंत्री गिर्रिराज सिंह के बयान के बाद से विपक्ष द्वारा घेरे जा रहे हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब हिंसा में जल रहे बिहार के बीच अकेले पड़ गये हैं. भागलपुर, मुंगेर, औरंगाबाद, सिवान, समस्तीपुर, नालंदा, शेखपुरा और नवादा में हुई हिंसा के बाद विपक्ष पहले से और भी हमलावर हो गई है. इस हिंसा के लिए राजद और कांग्रेस बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रही है. जबकि अब केंद्र ने भी इस मामले के लिए मौजूदा समय में चुप्पी साधी हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही जिम्मेदार ठहराया है.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने बिहार राज्य और पश्चिम बंगाल में हो रहे सांप्रदायिक दंगों के लिए राज्य की सरकारों पर जबरदस्त आरोप लगाया. शुक्रवार को मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि रामनवमी के दौरान राज्यों में फैले दंगों को लेकर राज्य की सरकारों की जिम्मेदारी थी वहां कानून व्यवस्था को बनाए रखे.

अहीर ने कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने का कर्तव्य राज्य सरकारों का है. जनता सरकारों से सुरक्षा की उम्मीद करती है. मुख्यमंत्रियों को पारदर्शी और जनता के लिए सुरक्षा प्रदान करने वाला होना चाहिए. जो भी इन राज्यों में हुआ वह असहनीय है और सरकार की तरफ से यह सही नहीं हुआ है. राज्य सरकारों पर तीखा आरोप लगाते हुए अहीर ने कहा कि आप अपनी राजनीतिक गेम हर कहीं नहीं खेल सकते हैं.

बता दें कि केंद्रीय मंत्री हंसराज अहीर अपने सीधे और बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं. इससे पहले कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला को उजागर करने में उनका बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने इसके लिए तत्कालीन मनमोहन सरकार और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी कटघरे में खड़ा किया था. उन्होंने कहा था कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में भले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सीधी भूमिका न रही हो, लेकिन घोटाला उनके कार्यकाल में हुआ है. इसलिए वे जांच के दायरे में हैं। उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके सामने हो रहा था, लेकिन मनमोहन सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इशारे पर पूरे प्रकरण पर प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी मौन रखा.

बता दें कि बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने अररिया उपचुनाव से पहले चुनावी सभा में यह कहा था कि यदि बीजेपी उम्मीदवार यहां से नहीं जीतते हैं अररिया पाकिस्तान बना जायेगा, जबकि यहां राजद उम्मीदवार सरफराज आलम के चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने यह कहा था कि यह क्षेत्र आतंकवादियों का गढ़ बन सकता है.

गिरिराज सिंह ने कहा कि अररिया बिहार का सीमावर्ती इलाका है. यह नेपाल और बंगाल से जुड़ा है. अररिया संसदीय सीट से सरफराज आलम को जीता कर वहां की जनता ने कट्टरपंथी विचारधारा को जन्म दिया है. साथ ही उन्होंने कहा है कि अररिया में सरफराज की जीत बिहार के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि देश के लिए भी खतरा है. वह आतंकवादियों का गढ़ बनेगा. जबकि इसके कुछ दिनों बाद भागलपुर में हिन्दू नववर्ष के मौके पर सामुदायिक हिंसा हो गई. जिसके बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनीं चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे पर हिंसा भड़काने वाली बयानबाजी का आरोप लगा.

इन उकसाने वाले बयानों पर लगभग सभी दलों ने ऐतराज जताया लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ नहीं कहा. उन्होंने चूप्पी बनाई रखी. हालांकि उन्होंने बिहार दिवस के मौके पर इस तरह की बयानबाजी को लेकर चेतावनी जरुर दी. साथ ही लोगों से किसी के बहकावे में आकर कोई गलत कदम नहीं उठाने की अपील भी की, लेकिन उन्होंने बीजेपी नेताओं का नाम नही लिया. जबकि इस हिंसा के बाद अर्जित के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया लेकिन अभी तक उसकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी है. इस मामले भी सामने आकर नीतीश ने अपनी पुलिस को फटकार नहीं लगाई. सीएम ने तो औरंगाबाद में कर्फ्यू की खबर को भी गलत करार दिया. औरंगाबाद के बाद नालंदा और शेखपुरा में भी हिंसा पर भी उन्होंने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया, जबकि आज तो हिंसा की आग तो नवादा पहुँच गयी है लेकिन नीतीश ने अभी तक सामने आकर कुछ नहीं कहा है.

इन बातों को देखकर यह सवाल उठाना तो लाजमी है कि क्या वो वहीं नीतीश कुमार हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर समझौता नहीं करने का ऐलान किया था. उन्होंने इस मूद्दे को लेकर राजद से अपनी दोस्ती तोड़कर बीजेपी के साथ दोबारा सरकर बना ली. लेकिन अब वें बीजेपी नेताओं की बयानबाजी पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं.

अब तो भागलपुर हिंसा के बाद समस्तीपुर और औरंगाबाद हिंसा में भी बीजेपी नेताओं का नाम सामने आ चूका है. ऐसे यह सीएम को कुछ स्टैंड लेना ही चाहिए ताकि लोगों में यह संदेश न जाए पाए कि नीतीश अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश कर रहे हैं न कि लोगों को नफरत की आग से बचाने की. लोगों का तो यह कहना है कि राजद से दुरी बनाने के बाद बीजेपी को कुछ बोलने में जदयू के लिए इसलिए मुश्किल हो रही है क्योंकि दोनों दल सरकार में हैं, इस स्थिति यदि बीजेपी साथ छुड़ा लेती है तो नीतीश की सरकार गिर जाएगी.

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